उत्तर प्रदेश में पिछले छह साल में अनेक ऐसी घटनाएं हुईं या अनेक ऐसे मौके आए, जब सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी के नेता के तौर पर अखिलेश यादव को सड़क पर उतरना चाहिए था लेकिन वे नहीं उतरे। वे रविवार को अपनी पार्टी के सोशल मीडिया अकाउंट का काम संभालने वाले मनीष जगन अग्रवाल के बचाव में उतरे। उसकी गिरफ्तारी के विरोध में अखिलेश यादव पुलिस मुख्यालय पहुंच गए। जवाबी कार्रवाई के तहत उन्होंने दबाव बना कर भाजपा की एक महिला नेता के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई। पुलिस मुख्यालय में उनको जब चाय ऑफर की गई तो उन्होंने कह दिया कि वे चाय नहीं पीएंगे क्योंकि उनको लग रहा है कि उसमें जहर मिला दिया जाएगा। राज्य की पुलिस फोर्स के लिए यह अपमानजक टिप्पणी थी, जो नहीं करनी चाहिए थी।
लेकिन वह मुद्दा नहीं है। असल मुद्दा है मनीष जगन अग्रवाल का, जिसके बचाव में अखिलेश पुलिस मुख्यालय पहुंचे थे। अगर वह सचमुच सपा का सोशल मीडिया अकाउंट चलाता था तो उसे कब का हटाया जाना चाहिए था। गिरफ्तारी के बाद उसके अपने अकाउंट्स से किए गए जो ट्विट्स सामने आ रहे हैं वह इतने घिनौने और गलीज हैं कि उनको यहां लिखा भी नहीं जा सकता है। उसने भाजपा पर हमला करने के नाम पर महिलाओं के बारे में इतने घटिया पोस्ट लिखे हैं, जिसकी किसी सभ्य समाज में कल्पना नहीं की जा सकती है। यह सही है कि अखिलेश के दबाव में भाजपा की जिस महिला नेता ऋचा राजपूत पर केस दर्ज हुआ है उसके पोस्ट भी बहुत अश्लील और आपत्तिजनक हैं। लेकिन उसने ‘सपा की टोंटी’ जैसे उन्हीं प्रतीकों का इस्तेमाल किया है, जिनकी शुरुआत सपा नेता ने की थी। भाजपा की नेता अपनी सोशल मीडिया पोस्ट के लिए जेल जाने लायक है लेकिन सपा नेता का अपराध तो अक्षम्य है। उसे बचाने की बजाय अखिलश को पहल करके उसे सजा दिलानी चाहिए।