
महाराष्ट्र में शिव सेना की सरकार बनाने के लिए हुई राजनीति के बाद संजय राउत का नाम देश भर में लोग जान गए हैं। वे शिव सेना के एक अहम नेता हैं, राज्यसभा सांसद हैं और उद्धव ठाकरे के मुख्यमंत्री बनाने में उनकी अहम भूमिका मानी जाती है। पर पार्टी के लोगों को ही उनकी राजनीति समझ में नहीं आ रही है या उनकी और शिव सेना की राजनीति लोगों को समझ में नहीं आ रही है। फिल्म अभिनेता सोनू सूद को लेकर उन्होंने जिस किस्म की टिप्पणी की है और उसके बाद जैसे सोनू सूद उद्धव ठाकरे से मिले उससे कंफ्यूजन बढ़ा है। संजय राउत ने पार्टी के मुखपत्र सामना में सोनू सूद को लेकर बहुत तीखी टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के संकट में एक महात्मा उभरे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इन महात्मा के पीछे दूसरी ताकत है। संजय राउत ने सोनू सूद को भाजपा का एजेंट बताते हुए यहां तक कि कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मन की बात में उनका जिक्र हो सकता है और वे बिहार, उत्तर प्रदेश से लेकर पूरे देश में मजदूरों का वोट भाजपा के पक्ष में जुटाने के काम आ सकते हैं।
इसमें संदेह नहीं है कि सोनू सूद वैचारिक रूप से भाजपा की ओर रूझान वाले अभिनेता हैं पर उन्होंने मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए जिस तरह काम किया है वह अभूतपूर्व है। उन्होंने हजारों मजदूरों को उनके घर पहुंचाया है और इसके लिए उनकी जितनी तारीफ हो वह कम है। पर राउत ने इसे राजनीतिक रंग दिया। जिस दिन उन्होंने टिप्पणी की उसी दिन सोनू सूद ने राउत के नेता और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मुलाकात की। उद्धव ठाकरे के बेटे और राज्य सरकार के मंत्री आदित्य ठाकरे भी उनके साथ थे। वहां संजय राउत नदारद थे। सो, अब यह कयास लगाया जा रहा है कि पार्टी नेतृत्व ने सोनू से मुलाकात करके राउत को उनकी जगह बताई है तो दूसरी ओर यह भी कहा जा रहा है कि राउत के जरिए हमला करा कर पार्टी ने सोनू को अपनी शरण में आने के लिए मजबूर किया। बहरहाल, दोनों में से जो भी सही हो पर सोनू सूद के कामकाज पर सवाल उठाना और उसे राजनीतिक रंग देना गलत है।