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उपचुनाव से सिंधिया के मंत्री बनने का रास्ता

ByNI Political,
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उपचुनाव से सिंधिया के मंत्री बनने का रास्ता
मध्य प्रदेश में उपचुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस दोनों के उम्मीदवारों की सूची जारी हो गई है। भाजपा ने कांग्रेस और विधानसभा से इस्तीफा देने वाले सभी 25 पूर्व विधायकों को टिकट दे दी है। इनमें से 22 विधायक ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी हैं और उनके साथ उन्होंने कांग्रेस छोड़ी थी। इन्हीं में से 14 लोग राज्य सरकार में मंत्री भी हैं। अब सिंधिया पर इस बात का दबाव है कि वे अपने ज्यादा से ज्यादा समर्थकों को चुनाव जिताएं। उनके जितने ज्यादा समर्थक चुनाव जीतेंगे, भाजपा में उनका कद उतना बढ़ेगा। एक तरह से मध्य प्रदेश की 28 सीटों का उपचुनाव उनके लिए केंद्र में मंत्री बनने का रास्ता आसान करेगा। पहले कहा जा रहा था कि उपचुनावों से पहले ही केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार का विस्तार होगा और सिंधिया को मंत्री बनाया जाएगा ताकि उनके समर्थकों में अच्छा मैसेज जाए। पर यह नहीं हो सका। अगर वे पहले ही मंत्री बन जाते तो इतना दबाव नहीं होता। उनके समर्थकों का राज्य सरकार में मंत्री बने रहना और उनका केंद्र में मंत्री बनना सीधे तौर पर उपचुनाव के नतीजों से जुड़ा है। दूसरी ओर भाजपा के प्रदेश नेतृत्व या मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के ऊपर मामूली दबाव है प्रदेश में भाजपा के पास 107 विधायक हैं और उसे बहुमत के लिए सिर्फ नौ सीटें और जीतनी हैं। यानी जितनी सीटों पर चुनाव हो रहा है उनमें से एक-तिहाई सीट भी भाजपा जीत जाती है तो उसकी सरकार को स्पष्ट बहुमत मिल जाएगा। दूसरी ओर सपा, बसपा, निर्दलीय सब मिला कर कांग्रेस के नेतृत्व वाले विपक्ष के पास 95 विधायक हैं। यानी कांग्रेस को बहुमत के लिए कम से कम 21 सीटें जीतनी होंगी, जो संभव नहीं लग रही हैं। सो, शिवराज सिंह चौहान अपनी सरकार को लेकर आश्वस्त हैं। वे उपचुनाव में मेहनत करेंगे पर उनके ऊपर ज्यादा दबाव नहीं होगा। दबाव ज्योतिरादित्य सिंधिया पर है क्योंकि ज्यादातर सीटें उनके असर वाले इलाके में हैं और उनके समर्थक लड़ रहे हैं। उनके अलावा केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के ऊपर भी दबाव है क्योंकि वे भी भिंड-ग्वालियर के इलाके के ही असरदार नेता हैं। सो, भाजपा के ज्यादातर उम्मीदवारों को जीत दिलाने की जिम्मेदारी इन्हीं दोनों नेताओं पर होगी।
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