भारत सरकार नए स्वतंत्रता सेनानियों की तलाश करने जा रही है। अब तक आधुनिक भारत के इतिहास या आजादी की लड़ाई के इतिहास में जिन स्वत्रंता सेनानियों के बारे में पढ़ाया जाता रहा है या आजादी की लड़ाई से जुड़ी जिन जगहों का इतिहास बताया जाता रहा है, उससे इतर सरकार स्वतंत्रता संग्राम से जुड़ी नई जगहों और नए सेनानियों की तलाश करेगी। यह काम आजादी के 75 साल पूरे होने के मौके पर होगा। यह भी मजेदार तथ्य है कि सरकार दो नेशनल ट्राइबल फ्रीडम फाइटर्स म्यूजियम बनवा रही है, जिसमें से एक गुजरात में बनेगा।
अगले साल भारत की आजादी के 75 साल पूरे हो रहे हैं। इस मौके को बहुत बड़े इवेंट में तब्दील करना है। यह बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कई बार कह चुके हैं। इसके लिए नया संसद भवन बनाया जा रहा है, जिसका निर्माण कार्य शुरू हो गया है। इसे आम लोगों की संसद कह कर प्रचारित किया जा रहा है। प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार के लिए कई ऐसे लक्ष्य तय किए हैं, जिनको 2022 में पूरा होना है।
बहरहाल, भारत की आजादी के 75 साल का जश्न मनाने के लिए बड़े कार्यक्रम आयोजित होने हैं, जिनकी शुरुआत अगले महीने से हो सकती है। जानकार सूत्रों का कहना है कि सरकार ने आजादी के 75 साल का जश्न मनाने की शुरुआत 75 हफ्ते पहले करने का फैसला किया है। अगले महीने में आजादी के 75 साल का जश्न शुरू होगा और 15 अगस्त 2022 तक चलेगा। इस दौरान देश की संस्कृति, परंपरा, कला, साहित्य आदि को लोगों के सामने लाने वाले कई उत्सव होंगे। यह पता नहीं है कि आजादी की लड़ाई में अग्रणी कांग्रेस पार्टी के नेताओं के योगदान का कितना प्रचार होगा, खास कर देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू का! हालांकि सरकार में जो योजना बनी है उसके मुताबिक देश की वैज्ञानिक उपलब्धियों का ब्योरा भी प्रस्तुत किया जाएगा। अगर यह काम ईमानदारी से होता है तो निश्चित रूप से पंडित नेहरू का गुणगान होगा क्योंकि देश की सारी लगभग वैज्ञानिक उपलब्धियां उन्हीं की हैं।
इस पूरे आयोजन का सबसे अहम सवाल यह है कि आखिर स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़े नए लोगों और खास कर ऐसे लोगों की तलाश करने का क्या मकसद है, जो कम मशहूर हैं या जिन्हें कम लोग जानते हैं? कहीं इसका मकसद आजादी की लड़ाई को लेकर कोई नया नैरेटिव ख़ड़ा करना तो नहीं है? ध्यान रहे कांग्रेस और समाजवादी पार्टियों के लोग हमेशा यह प्रचार करते रहते हैं कि आजादी की लड़ाई में राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ का कोई योगदान नहीं रहा। उलटे यह तथ्य बताया जाता है कि 1942 के भारत छोड़ो आंदोलन तक आरएसएस प्रत्यक्ष रूप से अंग्रेजी हुकूमत के साथ जुड़ा हुआ था और इसका विरोध कर रहा था। इतिहास की मौजूदा किताबों या इतिहास से इतर लिखे गए गई साहित्य में इक्का-दुक्का लोगों को छोड़ कर संघ के किसी व्यक्ति के आजादी की लड़ाई से जुड़े होने का कोई सबूत नहीं है। सो, ऐसा हो सकता है कि नए लोगों को खोज कर उनके छोटे-छोटे योगदान को बड़ा बता कर, उनका संबंध संघ या दूसरे हिंदुवादी संगठनों से स्थापित किया जाए और साथ के साथ दूसरे महान स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को कमतर किया जाए!