इस बात की चर्चा किसी ने नहीं की है कि कांग्रेस के तिरूवनंतपुरम के सांसद और अध्यक्ष पद के उम्मीदवार चुनाव लड़न में कितनी महारत रखते हैं। भारत आकर सांसद का चुनाव लड़ने से पहले वे संयुक्त राष्ट्र महासचिव का चुनाव भी लड़ गए थे। 2006 में कोफी अन्नान का दूसरा कार्यकाल पूरा हो रहा था और नया महासचिव चुना जाना था। उस समय डॉक्टर थरूर संयुक्त राष्ट्र संघ में काम करते थे। तब उन्होंने एक दूसरे एशियाई उम्मीदवार बान की मून के मुकाबले चुनाव लड़ने का फैसला किया। वैसे तो इन दोनों के अलावा पांच और उम्मीदवार मैदान में उतरे लेकिन डॉक्टर थरूर ही आखिर तक मुकाबले में रहे।
संयुक्त राष्ट्र महासचिव के चुनाव का प्रक्रिया के तहत जुलाई से अक्टूबर 2006 के बीच संयुक्त राष्ट्रय सुरक्षा परिषद के सदस्यों के बीच चार स्ट्रॉ पोल हुए, जिसमें हर बार बान की मून जीते और शशि थरूर दूसरे स्थान पर रहे। निर्णायक चुनाव से पहले मून को वीटो वाले सभी पांच देशों का समर्थन मिला, जिसके बाद उनको चुना गया और थरूर ने नाम वापस ले लिया। उसके बाद ही वे भारत लौटे और 2009 का लोकसभा चुनाव लड़ा, जिसमें जीतने के बाद वे केंद्र में मंत्री बने थे। तब से उन्होंने लोकसभा का चुनाव तीन बार जीता है। सो, थरूर लड़ने वाले नेता हैं। अध्यक्ष के चुनाव में भी नामांकन दाखिल करने के बाद वे जितनी मेहनत कर रहे हैं, वह मामूली नहीं है। नतीजे का पता होने के बावजूद इस तरह से लड़ना जैसे यह जीवन का सबसे महत्वपूर्ण चुनाव है, बहुत बड़ी बात है।
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