शशि थरूर कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव लड़ सकते हैं। उन्होंने इस बारे में सोनिया गांधी से बात की है और उनकी इजाजत मांगी है। सोनिया गांधी ने बताया जा रहा है कि उनसे कहा है कि इस बारे में अंतिम फैसला उनको करना है। अगर वे अध्यक्ष का चुनाव लड़ना चाहते हैं तो कोई बात नहीं है, स्वागत है। उन्होंने यह भी भरोसा दिलाया है कि अगर अध्यक्ष पद का चुनाव होता है तो वे तटस्थ रहेंगी। यानी किसी भी उम्मीदवार के पक्ष या विपक्ष में वे या परिवार का कोई सदस्य अपील नहीं करेगा या प्रचार नहीं करेगा। हालांकि यह सिर्फ कहने की बात होती है।
बताया जा रहा देश के तमाम राज्यों की कमेटियों से राहुल गांधी को फिर से अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव पास होने के बावजूद राहुल अध्यक्ष का चुनाव नहीं लड़ेंगे। यह लगभग तय बताया जा रहा है कि वे परचा नहीं दाखिल करेंगे। इसका मतलब है कि नेहरू-गांधी परिवार को कोई उम्मीदवार उतारना होगा। वह उम्मीदवार अशोक गहलोत हो सकते हैं। सबसे ज्यादा संभावना उनके नाम की है। हालांकि उन्होंने भी प्रदेश कमेटी से राहुल के नाम का प्रस्ताव भिजवाया है लेकिन कहा जा रहा है कि राहुल की ना के बाद सोनिया गांधी की नजर उनके ऊपर है। वे कांग्रेस अध्यक्ष हो सकते हैं। लेकिन उससे पहले राजस्थान के मुख्यमंत्री पद का मसला भी सुलझाना होगा।
बहरहाल, बड़ा सवाल यह है कि अशोक गहलोत बनाम शशि थरूर का मुकाबला हो या सोनिया गांधी के परिवार की ओर से उतारे गए किसी भी दूसरे उम्मीदवार से थरूर का मुकाबला हो तो क्या थरूर उतने वोट ले पाएंगे, जितने कांग्रेस अध्यक्ष के पिछले चुनाव में हारने वाले शरद पवार को मिले थे? ध्यान रहे कांग्रेस अध्यक्ष का एक दिलचस्प चुनाव 1997 में हुआ था, जब नरसिंह राव की जगह लेने के लिए सोनिया गांधी ने सीताराम केसरी का समर्थन किया था। केसरी तब कांग्रेस के कोषाध्यक्ष थे और परिवार के करीबी माने जाते थे। हालांकि बाद में उन्हीं सीताराम केसरी ने सोनिया गांधी को किनारे करने का प्रयास किया और बड़े बेइज्जत होकर अध्यक्ष पद से हटे थे।
सीताराम केसरी को कांग्रेस के दो दिग्गज नेताओं ने चुनौती थी। सोनिया गांधी के सक्रिय राजनीति में उतरने की संभावना को भांप कर शरद पवार ने परचा दाखिल किया था और राजेश पायलट भी मैदान में उतरे थे। उस चुनाव में कुल 7,460 वैध वोट पड़े थे, जिनमें से 6,227 वोट केसरी को मिले थे। शरद पवार सिर्फ 882 वोट हासिल कर पाए थे और पायलट को 354 वोट मिले थे। अगर सोनिया परिवार की ओर से उतारे गए उम्मीदवार के सामने थरूर आते हैं तो उनकी पहली चुनौती सम्मानजनक वोट हासिल करने की होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि वे शरद पवार जितना वोट ले पाते हैं या नहीं।
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