
सोचें, इस समय जब कांग्रेस पार्टी के एक दर्जन दिग्गज नेता राज्यसभा की एक सीट के लिए एड़ियां रगड़ रहे हैं तब कपिल सिब्बल के पास तीन पार्टियों का ऑफर था। तीन अलग अलग राज्यों में तीन अलग अलग पार्टियों ने सिब्बल को राज्यसभा भेजने का प्रस्ताव दिया था। लेकिन सिब्बल ने मौका दिया समाजवादी पार्टी को। वे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा में जाएंगे और इसके साथ ही उनका कांग्रेस के साथ नाता भी खत्म हो गया है। वैसे भी इस बार कांग्रेस उनको किसी राज्य से उच्च सदन में नहीं भेज रही थी। ध्यान रहे उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के सिर्फ इस बार सिर्फ दो विधायक हैं। पिछली बार कांग्रेस के 27 विधायक थे तो सपा ने कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर उनका समर्थन कर दिया था। इस बार सपा की कांग्रेस से दूरी है और कांग्रेस के सिर्फ दो विधायक हैं। इसलिए वे कांग्रेस उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा नहीं जा सकते थे।
तभी उन्होंने कांग्रेस पार्टी छोड़ दी और सपा की साइकिल पर सवार हो गए। समाजवादी पार्टी ने भी उनको अपना राज्यसभा सांसद बनाने में फायदा देखा। वैसे फायदा तो झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन और राजद प्रमुख लालू प्रसाद भी देख रहे थे लेकिन सिब्बल ने सपा को मौका दिया। उन्होंने इस बार राज्य बदलना जरूरी नहीं समझा। गौरतलब है कि हाल में जेल से रिहा हुए आजम खान ने अखिलश यादव पर दबाव बनाया था कि वे कपिल सिब्बल को राज्यसभा भेजे क्योंकि सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट में उनकी बड़ी मदद की थी। अखिलेश ने भी आजम खान की सिफारिश इसलिए मान ली क्योंकि इसमें उनको दो फायदा दिखा। पहला तो यह कि दिल्ली में एक बडा चेहरा और मजबूत वकील उनके साथ रहेगा और दूसरे आजम खान की नाराजगी दूर होगी। बहरहाल, सिब्बल की तो राज्यसभा सुनिश्चित हो गई। अब देखना है कि उनके साथ कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठाने वाले गुलाम नबी आजाद और आनंद शर्मा का क्या होता है?