इस बात की कई तरह की व्याख्या होगी कि आखिर बिहार में कौन सा मुद्दा चला, क्या हिट रहा और क्या फ्लॉप हुआ। सोशल मीडिया में मजाक चल रहा है कि बिहार के लोगों ने नौकरी से ऊपर कोरोना की वैक्सीन को चुना। बहरहाल, ऐसा लग रहा है कि नीतीश कुमार का सामाजिक सुधार का एजेंडा इस बार भी काम आया है। जिसके बारे में माना जा रहा था कि शराबबंदी उनके ले डूबेगी उसने ही उनको बचा लिया। यह सही है कि शराब पीने वाली की एक अलग कांस्टीट्यूंशी बन गई है और वे इस बात के उत्साहित थे कि राजद की सरकार बनी तो पाबंदी खत्म होगी। लेकिन व्यापक समाज में और महिलाओं के बीच यह मुद्दा हिट रहा। यह सही है कि शराबबंदी के बावजूद लोगों को शराब मिल रही है और लोग महंगी शराब खरीद कर पी रहे हैं। लेकिन यह भी सही है कि गरीबों में इसका सेवन काफी कम हो गया है और शराब पीकर घरों में होने वाली मारपीट तो लगभग बंद हो गई है।
सो, चुपचाप महिलाओं ने जो वोट डाला वह शराबबंदी के नीतीश के फैसले पर मुहर है। इसके अलावा नीतीश कुमार ने सामाजिक सुधार के कई और कदम उठाए थे। उन्होंने दहेजबंदी के कानून को ज्यादा सख्ती से लागू किया। पैतृक संपत्ति की बिक्री या हस्तांतरण में घर की महिलाओं की सहमति को अनिवार्य बनवाया। यह पिता की संपत्ति में बेटियों को बराबर अधिकार देने के लिए किया गया। उन्होंने पहले स्थानीय चुनावों में महिलाओं के लिए 50 फीसदी सीटें आरक्षित की थीं। अपने सबसे पहले कार्यकाल में लड़कियों के लिए साइकल और पोशाक की योजना शुरू की थी, जिससे स्कूल जाने वाली लड़कियों की संख्या में अचानक बड़ा इजाफा हुआ था। उन्होंने जीविका से लेकर आंगनवाड़ी तक कई ऐसी योजनाएं शुरू कीं, जिनसे महिलाओं का सामाजिक और आर्थिक दोनों सशक्तिकरण हुआ। समाज सुधार के इन कदमों ने उनकी पार्टी और साथ साथ भाजपा को भी डूबने से बचा लिया।