राज्यसभा सचिवालय ने कांग्रेस महासचिव केसी वेणुगोपाल के पूछे सवाल को जवाब देने लायक नहीं माना या उसे सूची से हटा दिया तो वह बात समझ में आती है क्योंकि उनका सवाल विवादित था और भाजपा व केंद्र सरकार को मुश्किल में डालने वाला था। उन्होंने इजराइल की संस्था एनएसओ से जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस की खरीद के बारे में सवाल पूछा था। एक तो यह मामला अदालत के विचाराधीन है। सुप्रीम कोर्ट ने इसकी जांच के लिए विशेषज्ञों की एक तकनीकी समिति बनाई है। संसद के दोनों सदनों में सदस्यों द्वारा पूछे जाने वाले सवालों के जो नियम हैं उनमें एक नियम यह भी है कि अदालत में विचाराधीन मुद्दों से जुड़े सवालों को सूचीबद्ध करने से इनकार किया जा सकता है। लेकिन सवाल है कि भाजपा के अपने ही सांसद सुब्रह्मण्यम स्वामी के सवाल को क्यों सूची से हटाया गया? उनका सवाल तो पहले सूचीबद्ध हो गया था?
असल में सुब्रह्मण्यम स्वामी ने पूछा था कि क्या लद्दाख में चीन की सेना भारत की सीमा में घुसी है। यह जाहिर तौर पर राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़ा मुद्दा है और इस आधार पर भी किसी सदस्य के सवाल को सूचीबद्ध करने से इनकार किया जा सकता है। लेकिन इस सवाल के मामले में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। उलटे यह सवाल तो सरकार के लिए मौका था चीनी घुसपैठ पर लगाई जा रही अटकलों का जवाब देने का। सोचें, खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा हुआ है कि न तो कोई भारत की सीमा में घुसा है और न कोई घुस आया है, तो यहीं बात संसद में कह देने में क्या दिक्कत थी? इसी बात को स्वामी के जवाब में कहा जा सकता था? सरकार अगर कह देती को कोई घुसपैठ नहीं हुई है तो इससे कौन सी राष्ट्रीय सुरक्षा खतरे में आ जाती?
जाहिर है जवाब नहीं देने का कारण कुछ और है। सरकार क्या चीनी घुसपैठ की बात छिपाना चाह रही है? सरकार को पता है कि सर्वदलीय बैठक में प्रधानमंत्री का कहना कि कोई घुसपैठ नहीं हुई है, एक बात है लेकिन संसद में सवाल के जवाब में सरकार का आधिकारिक रूप से यहीं बात कहना अलग मतलब वाला हो जाएगा। ऊपर से सुब्रह्मण्यम स्वामी चीनी घुसपैठ को लेकर कुछ ज्यादा ही सक्रिय हो गए हैं। उन्होंने अरुणाचल के भाजपा सांसद तापिर गाओ के हवाले भी दो दिन पहले कहा था कि चीन ने अरुणाचल में घुसपैठ की है। हालांकि बाद में तापिर गाओ इस बात से मुकर गए।
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