केंद्र सरकार का रुख सुप्रीम कोर्ट के प्रति नरम और गरम दोनों दिख रहा है। सरकार सद्भाव भी दिखा रही है और टकराव वाले फैसले भी कर रही है। पिछले दिनों दो बड़े फैसले हुए, जिनसे लगा कि केंद्र सरकार ने सर्वोच्च अदालत से टकराव का रास्ता छोड़ दिया है। पहले सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दो जजों की नियुक्ति का फैसला 48 घंटे के अंदर किया और उसके बाद सुप्रीम कोर्ट के प्रति कई सख्त टिप्पणियां करने वाले कानून मंत्री किरेन रिजीजू को बदल दिया। उनकी जगह अर्जुन राम मेघवाल कानून मंत्री बनाए गए। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम की ओर से दो जजों की नियुक्ति के लिए भेजा गया प्रस्ताव केंद्र सरकार ने 48 घंटे में स्वीकार किया। कॉलेजियम ने 16 मई को प्रस्ताव भेजा था, जिसे 18 मई को मंजूरी मिल गई और 19 मई को दोनों जजों की शपथ हो गई।
इससे पहले कई बार कॉलेजियम के प्रस्ताव को मंजूरी मिलने में महीनों लग गए थे। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने 13 दिसंबर 2022 को चार जजों की नियुक्ति की सिफारिश की थी, जिसे 53 दिन बाद चार फरवरी को स्वीकार किया गया था। इसी तरह जस्टिस दीपांकर दत्ता की सिफारिश 26 सितंबर को हुई थी और 75 दिन के बाद 10 दिसंबर को उसे मंजूरी मिली थी। सरकार के सद्भाव दिखाने के ये दो संकेत हैं। लेकिन इसके बाद सरकार ने दिल्ली में अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले में दिल्ली सरकार को अधिकार देने वाले फैसले को पलटने के लिए अध्यादेश लागू कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने माना था कि अधिकारियों के तबादले का अधिकार दिल्ली सरकार को होगा। लेकिन केंद्र ने अध्यादेश के जरिए एक प्राधिकरण बना दिया, जिसमें मुख्यमंत्री के अलावा दो अधिकारी होंगे और बहुमत से फैसला होगा। टकराव होने की स्थिति में उप राज्यपाल का फैसला मान्य होगा। यह अध्यादेश ऐसे समय आया, जब अदालत में गर्मी की छुट्टियां हो गईं।