आमतौर पर शायरी और कविता में इस बात का इस्तेमाल होता है कि जिसने दर्द दिया है, दवा भी वहीं देगा। पर सोमवार को देश की सबसे बड़ी अदालत के एक फैसले में यहीं बात दिखी। सुप्रीम कोर्ट में एक मामला आया था, जिसमें जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की 4जी सेवा शुरू करने का आदेश देने का अनुरोध किया गया था। सुप्रीम कोर्ट ने इस पर सुनवाई के बाद कहा कि केंद्रीय गृह सचिव की अध्यक्षता में तत्काल एक कमेटी बनाई जाए, जो इस पर विचार करे। अदालत ने यह भी कहा कि संचार सचिव और जम्मू कश्मीर के शीर्ष अधिकारी भी इस कमेटी का हिस्सा होंगे।
अब सोचें, जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की 4जी सेवा नहीं चलेगी, यह किसका फैसला है? यह फैसला राज्य में लागू राष्ट्रपति शासन संभाल रहे प्रशासन का है। राष्ट्रपति शासन के दौरान राज्यपाल सहित प्रशासन किसके अधीन काम करता है, केंद्रीय गृह मंत्रालय के अधीन। केंद्रीय गृह मंत्रालय का प्रशासन गृह सचिव के हाथ में होता है। सो, जाहिर है जम्मू कश्मीर प्रशासन ने केंद्रीय गृह मंत्रालय की मंजूरी के बगैर 4जी सेवा रोकने का फैसला नहीं किया होगा। यानी जिस केंद्रीय गृह सचिव की अधिकारिता में और जानकारी में इंटरनेट 4जी सेवा रोकने का फैसला हुआ है उसी को अदालत ने यह जिम्मेदारी दी है कि वह इस बारे में विचार करे! सो, तय मानें कि जम्मू कश्मीर में इंटरनेट की 4जी सेवा अभी नहीं शुरू होने जा रही है।
जिसने दर्द दिया वहीं दवा भी देगा!
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