भारत में पिछले कुछ सालों से इस बात का डंका पीटा जा रहा है कि कारोबार सुगमता के मामले में भारत में बहुत काम हुआ है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद हर जगह कह रहे हैं कि उनकी सरकार ने कारोबार के रास्ते की कितनी बाधाएं हटा कर लोगों के लिए कारोबार शुरू करना और चलाना आसान कर दिया है। इसी आधार पर वे दुनिया भर के देशों के निवेशकों को भारत आने और कारोबार शुरू करने का न्योता देते हैं। लेकिन स्वीडेन के बस और ट्रक बनाने वाली कंपनी ने इस कारोबार सुगमता की पोल खोल दी है। कंपनी ने न खाऊंगा, न खाने दूंगा के नारे की भी पोल खोली है। उसने कहा है कि अपनी बसें बेचने के लिए उसने सात राज्यों में रिश्वत खिलाई थी। लेकिन उससे ज्यादा चिंता की बात यह है कि कंपनी इसके बावजूद देश में कारोबार नहीं कर पाई।
स्वीडन की बस और ट्रक बनाने वाले कंपनी स्कैनिया ने दावा किया है कि उसने सिटी बसें बेचने के लिए राज्यों में पैसे दिए।
यह कंपनी जर्मनी की फॉक्सवैगन की साझेदार भी है। कंपनी से सीईओ हेनरिक हेनरिक्सन ने कहा है कि उनकी कंपनी सचमुच भारत में कारोबार करने आई थी। वे भारत में कारोबार बढ़ाना चाहते थे। पर उनका कहना है कि उन्होंने भारत में कारोबार के रास्ते में आने वाली जोखिम का आकलन कमतर किया था। उनको जोखिम का अंदाजा नहीं था। इसलिए उन्हें भारत में अपनी फैक्टरी बंद करनी पड़ी। सोचें, अंतरराष्ट्रीय रेटिंग के मामले में एक ही रेटिंग है कोराबार सुगमता की, जिसमें भारत की स्थिति सुधरती दिख रही है फिर भी ऐसे हालात हैं कि विदेशी कंपनियों को कारोबार बंद करके लौटना पड़ रहा है।