देश के अलग अलग हिस्सों में हुई सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं और नफरत फैलाने वालों भाषणों के खिलाफ विपक्ष की 13 पार्टियों ने साझा बयान जारी किया। यह एक ऐसा मुद्दा है, जिस पर विपक्ष एकजुट हो सकता था लेकिन इसमें भी विपक्ष की कई पार्टियां साथ नहीं आईं। इसी तरह संसद के बजट सत्र के दौरान किसी मसले पर समूचा विपक्ष साथ नहीं आया। महंगाई जैसे मुद्दे पर भी सभी विपक्षी पार्टियों का साझा नहीं बना। तभी सवाल है कि विपक्ष की ओर से साझा बयान जारी करने या साझा विरोध की रणनीति बनाने का काम कौन संभाल रहा है और क्या उसने सभी विपक्षी पार्टियों से बात की थी?
यह सवाल इसलिए अहम है क्योंकि सांप्रदायिक हिंसा और नफरत फैलाने वाले भाषणों के खिलाफ बयान देने वाली पार्टियां भी साझा बयान में शामिल नहीं हुईं। टीडीपी के नेता चंद्रबाबू नायडू से बात हो सकती थी लेकिन साझा बयान में वे शामिल नहीं थे। इसी तरह के चंद्रशेखर राव से भी बात हो सकती थी, लेकिन ऐसा लग रहा है कि प्रदेश की राजनीति में कांग्रेस के साथ चल रहे टकराव की वजह से उन्होंने दूरी रखी। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल सांप्रदायिक हिंसा के मसले पर चुप्पी साधे हुए हैं। उन्होंने भी साझा बयान पर दस्तखत नहीं किए। सबसे हैरान करने वाली बात जेडीएस को लेकर है, जिसके साथ दो साल पहले तक कांग्रेस की सरकार चल रही थी। दूसरे, कर्नाटक में हुई सांप्रदायिक घटनाओं पर जेडीएस का विरोध का रुख रहा है। इसके बावजूद उसे साझा बयान में नहीं शामिल किया गया।