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कांग्रेस और भाजपा के लक्ष्य का फर्क

वैसे तो कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी के बीच कई मामलों में बड़ा फर्क है लेकिन जब चुनाव की बात आती है तो लक्ष्य तय करने के मामले में दोनों में जमीन आसमान का अंतर दिखता है। कांग्रेस कभी भी बहुत बड़ा या महत्वाकांक्षी लक्ष्य नहीं तय करती है, जबकि भाजपा हमेशा बड़ा लक्ष्य तय करती है। कई बार उसे हासिल भी कर लेती है। लेकिन ऐसा नहीं है कि लक्ष्य हासिल नहीं हुआ तो उससे हतोत्साहित होकर पार्टी ने अगली बार लक्ष्य छोटा कर दिया। अगली बार उससे भी बड़ा लक्ष्य रखा जाता है। मिसाल के तौर पर भाजपा ने अगले लोकसभा चुनाव में चार सौ सीट जीतने का लक्ष्य रखा है, जबकि कांग्रेस का लक्ष्य अपनी सीटों को दोगुना करने भर का है।

भाजपा ने मिशन चार सौ के लिए काम भी शुरू कर दिया है। अपनी जीती हुई 303 लोकसभा सीटों के अलावा पार्टी ने 160 और सीटों की पहचान की है, जहां वह पिछली बार दूसरे या तीसरे नंबर पर रही थी या उस समय की उसकी सहयोगी पार्टी ने वह सीट जीती थी। इन 160 सीटों पर पार्टी ने केंद्रीय मंत्रियों की जिम्मेदारी लगाई है। हर मंत्री के जिम्मे तीन या चार सीटें हैं। इसके अलावा इन सीटों पर राज्यसभा के सांसदों को खासतौर से जिम्मा दिया गया है। साथ ही पार्टी ने एक लाख कमजोर बूथ की पहचान की है, जहां अलग से काम हो रहा है। बूथ मजबूत करने के लिए पन्ना प्रमुख बढ़ाए जा रहे हैं। अब मतदाता सूची के हर पन्ने के लिए दो प्रमुख नियुक्त करने की चर्चा है।

ध्यान रहे भाजपा ने 2014 के लोकसभा चुनाव में 273 सीट जीतने का लक्ष्य रखा था। उस समय तक भाजपा को पहले कभी पूर्ण बहुमत नहीं हासिल हुआ था। अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 1998 और 1999 में पार्टी को अधिकतम 183 सीटें मिली थीं। इसलिए 273 का लक्ष्य बहुत बड़ा था, जिसे पार्टी ने हासिल कर लिया। उसे 2014 में 284 सीटें मिलीं। इसके बाद 2019 के चुनाव में लक्ष्य बढ़ा कर तीन सौ सीट का कर दिया गया। सारी पार्टियां और राजनीतिक जानकार इसका मजाक उड़ा रहे थे क्योंकि उनको लग रहा था कि इस बार भाजपा की सीटें घटेंगी पर उसने 303 सीटें जीत लीं। इस बार उसने चार सौ सीटों का लक्ष्य रखा है और उसे हासिल करने का प्रयास शुरू कर दिया है।

दूसरी ओर कांग्रेस व अन्य प्रादेशिक पार्टियों का लक्ष्य बहुत छोटा है। कांग्रेस का लक्ष्य अपनी मौजूदा सीटों की संख्या को दोगुन करने का है। अभी उसके पास 52 सीटें हैं और पार्टी के नेताओं का मानना है कि वे बहुत खुश हो जाएंगे, अगर सीटों की संख्या एक सौ पार कर जाए। यानी तीन अंक में पहुंच जाए। इसी को ध्यान में रख कर कांग्रेस की भारत जोड़ो यात्रा हुई है। कांग्रेस की यात्रा जिन 14 राज्यों से गुजरी है उन राज्यों में भाजपा को अपनी सीटें बचानी हैं या बढ़ानी हैं। उसकी मिली ज्यादातर सीटें उन्हीं राज्यों में हैं। अन्य विपक्षी पार्टियों का लक्ष्य तो और भी छोटा है। वे अपने जीतने की बजाय इस प्रयास में लगे हैं कि भाजपा की 50-60 सीटें कम कर देनी हैं ताकि उसको बहुमत न मिले।

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