
भारत में कोरोना वायरस के बढ़ते संक्रमण से लड़ाई सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शुरू हुई थी और मुख्यमंत्रियों से होते हुए कलेक्टरों और अब रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशन यानी आरडब्लुए की कमान में पहुंच गई है। हालांकि इस दौरान कोरोना वायरस का संक्रमण कम नहीं हुआ है, बल्कि बहुत बढ़ गया है। इसके बावजूद लड़ाई की कमान इतनी तेजी से बदली है कि हैरानी हो रही है कि आखिर सरकार की रणनीति का क्या है? याद करें, खुद प्रधानमंत्री मोदी ने खुद क्या कहा था। उन्होंने कहा था कि जिस समय देश में पहला मरीज आया उसी समय उन्होंने हवाईअड्डों पर स्क्रीनिंग शुरू करा दी और जब पांच सौ मरीज हुए तब पूरे देश में लॉकडाउन करा दिया। तब तो खुद प्रधानमंत्री कमान संभाले हुए थे पर देश में जब 40 हजार मामले हो गए तो कमान का विकेंद्रीकरण कर दिया गया है। यह भी माना जा रहा है कि भारत का लॉकडाउन दुनिया में सबसे सख्त रहा क्योंकि भारतीय पुलिस उसे लागू करा रही थी। जहां लॉकडाउन के दिशा-निर्देशों पर अमल में कमी रही वहां सीधे केंद्र सरकार ने अपनी टीम भेज दी। प्रधानमंत्री ने ट्विट करके राज्यों से कहा कि वे ढिलाई न बरतें। सोचें, इस तरह सीधे प्रधानमंत्री और केंद्र सरकार की कमान में कोरोना से लड़ाई शुरू हुई थी।
लेकिन जैसे जैसे मामले बढ़ने लगे, संक्रमण बढ़ने लगा, लोग मरने लगे, अर्थव्यवस्था चौपट होने लगी, बेरोजगारी बढ़ने लगी वैसे वैसे केंद्र ने हाथ पीछे खींचने शुरू किए और राज्यों को जिम्मेदारी देनी शुरू की। ध्यान रहे पहले लॉकडाउन की घोषणा के बारे में केंद्र ने राज्यों से कोई सलाह नहीं की थी। लेकिन दूसरे लॉकडाउन से पहले सलाह की गई और तीसरा लॉकडाउन तो सीधे उनके भरोसे ही छोड़ दिया गया। राज्यों को अपना अपना देखने के लिए छोड़ दिया गया। और हां, अभी तक उन्हें कोई आर्थिक मदद भी नहीं दी गई है। उलटे मुख्यमंत्रियों के खाते में जाने वाले दान को सीएसआर नहीं माना जाएगा, यह सुविधा सिर्फ पीएम-केयर्स के लिए है।
बहरहाल, कमान बदलते-बदलते अब जिलों के कलेक्टर और शहरी इलाकों में आरडब्लुए के हाथ में आ गई है। अब जिलावार कलेक्टर फैसला करेंगे कि लॉकडाउन को कैसे लागू करना है। केंद्र ने एक मोटी गाइडलाइन देकर अपनी जिम्मेदारी पूरी कर ली है। हालांकि वह गाइडलाइन भी इतनी दुरुह है कि हर दिन खुद ही सरकार को उस पर स्पष्टीकरण देना होता है। उस स्पष्टीकरण के हिसाब से कलेक्टर फैसला करेंगे। इसके अलावा शहरी इलाकों में आरडब्लुए को फैसला करने के लिए छोड़ दिया गया है। काम करने वाली नौकरानियां घरों जाएंगी या नहीं, जाएंगी तो उनकी स्क्रीनिंग और उनका सैनिटाइजेशन कैसे होगा, इलेक्ट्रिशियन, प्लंबर आदि को आने-जाने की इजाजत देनी है या नहीं, यह सब आरडब्लुए वाले और हाउसिंग सोसायटी का प्रबंधन तय करेगा।