प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उत्तर प्रदेश में विधानसभा की 58 सीटों के मतदान से 12 घंटे पहले एक लंबा इंटरव्यू दिया, जिसमें भाजपा की जीत के दावे सहित कई बातें उन्होंने कही। उसमें एक कमाल की बात उन्होंने यह कही कि कृषि कानून किसानों के हित में बनाया गया था और उसे देशहित में वापस लिया गया। कानून वापस लिए जाते समय भी यह बात कही गई थी। लेकिन प्रधानमंत्री इस बात को दोहरा रहे हैं इसका मतलब यह गंभीर बात है। तभी सवाल है कि क्या किसानों का हित और देश का हित अलग अलग हैं? प्रधानमंत्री की टिप्पणी से इस तरह के कई सवाल खड़े होते हैं। farmer and the country
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प्रधानमंत्री ने जो कहा, उस पर कोई पूरक सवाल इंटरव्यू करने वाली पत्रकार ने नहीं पूछा। लेकिन यह पूछा जाना चाहिए था कि क्या किसानों का आंदोलन देश के लिए खतरा बन रहा था? किसानों के एक साल तक चले शांतिपूर्ण आंदोलन से देश और लोकतंत्र मजबूत हो रहा था या उससे देश के लिए खतरा पैदा हो रहा था? यह भी सवाल है कि क्या किसान अपना हित नहीं समझते हैं, जो उन्होंने सरकार की बात नहीं समझी? अगर बिल में किसानों का हित था तो किसान इतना कष्ट उठा कर एक साल तक क्यों धरने पर बैठे रहे और जान गंवाते रहे? अगर बिल किसानों के हित में था तो देश के सारे किसान उसके पक्ष में खड़े क्यों नहीं हुए और उन्होंने क्यों प्रदर्शन कर रहे किसानों का विरोध नहीं किया? ऐसा लग रहा है कि चुनावी चिंता में किसानों के आगे झुकने के फैसले को देशहित का जामा पहना कर सरकार को शर्मिंदगी से निकालने का प्रयास किया जा रहा है।