केंद्र सरकार के बनाए तीन कृषि कानूनों का विरोध कर रहे किसानों की ट्रैक्टर रैली में मंगलवार को कुछ जगहों पर उपद्रव होने की खबरों के बीच सबसे ज्यादा फोकस इस बात पर रहा कि कुछ लोगों ने लाल किले पर तिरंगे की बजाय दूसरा झंडा फहरा दिया। इसे देशद्रोह और पता नहीं क्या क्या कहा गया। हालांकि मीडिया में भी अधूरा सच ही दिखाया गया। किसी ने लाल किले पर लहरा रहे तिरंगे को हाथ नहीं लगाया था। उस तिरंगे के आगे जो एक पोल खाली थी, जिस पर 15 अगस्त को तिरंगा फहराया जाता है उस पर कुछ लोगों ने निशान साहिब और किसान यूनियन का झंडा फहरा दिया। इस घटना की सबसे ज्यादा आलोचना हो रही है। किसान आंदोलन को बदनाम करने के लिए इसी का इस्तेमाल किया जा रहा है।
लेकिन यह कोई नहीं पूछ रहा है कि तीन साल पहले ही सरकार ने लाल किले को लीज पर दे दिया था तो फिर अब राष्ट्रीय गर्व आदि की बातों का क्या मतलब है? हालांकि सरकार कहती है कि लीज पर नहीं दिया है और किसी से कोई पैसा नहीं लिया, बल्कि डालमिया समूह ने कारपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी के तहत इसे गोद लिया है और रख-रखाव कर रही है। तब भी सवाल है कि जिसे आप सबसे बड़ी धरोहर और आजादी, लोकतंत्र आदि का प्रतीक बता रहे हैं उसका रख-रखाव खुद नहीं कर सकते हैं तो फिर उसके सम्मान की इतनी चिंता का क्या मतलब है?
दूसरा सवाल यह है कि क्या लाल किले पर दूसरा झंडा फहराने को किसी कानून के तहत रोका गया है या अवैध ठहराया गया है? ध्यान रहे लाल किला कोई सरकारी इमारत नहीं है और न कोई संवैधानिक इमारत है। यह एक ऐतिहासिक धरोहर है, जहां 15 अगस्त को तिरंगा फहराया जाता है और प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हैं। मीडिया में भी जो लोग इसे महान अपराध बता रहे हैं उनको बताना जरूरी है कि वह अब निजी कंपनी के हवाले है, जो पैसे कमाने के लिए वहां दस तरह के धंधे चला रही है। भाजपा ने 1988 में एक प्रदर्शन लाल किले के सामने वाले मैदान में उसी जगह पर किया था, जहां मंगलवार को किसान प्रदर्शनकारी पहुंचे थे। मदनलाल खुराना के नेतृत्व में हुए प्रदर्शन पर तब की डीसीपी किरण बेदी ने जम कर लाठियां चलवाई थीं और तब भी हालात वैसे ही बन गए थे, जैसे मंगलवार को बने थे।
उसी लाल किले को लेकर भाजपा ने पूरे देश में नारा लगाया था कि ‘लाल किले पर कमल निशान, मांग रहा है हिंदुस्तान’। नरेंद्र मोदी को दोबारा प्रधानमंत्री बनाने के लिए 2018 में उसी लाल किले के प्रांगण में राष्ट्र रक्षा यज्ञ का आयोजन किया गया था। उसी लाल किले के मैदान में हर साल रामलीला का आयोजन होता है और तरह-तरह के करतब होते हैं। फिर अगर वहां निशान साहिब या किसान यूनियन का झंडा किसी ने लहरा दिया तो इस पर इतनी हायतौबा मचाने की क्या जरूरत है?