विधानसभा की छह और लोकसभा की एक सीट पर उपचुनाव पांच राज्यों की सरकारों के लिए बड़ी चुनौती हैं। इनमें से तीन राज्य ऐसे हैं, जहां अगले एक से डेढ़ साल में विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले यह संभवतः आखिरी उपचुनाव है। इन उपचुनावों में जो पार्टी जीतेगी वह अपनी हवा बनाएगी और उससे चुनाव का मूड जाहिर होगा। ये तीन राज्य हैं- राजस्थान, छत्तीसगढ़ और ओड़िशा। इनमें से राजस्थान और छत्तीसगढ़ में अगले साल विधानसभा के चुनाव हैं और ओड़िशा में डेढ़ साल के बाद लोकसभा के साथ चुनाव हैं।
ओड़िशा का मामला और दिलचस्प है क्योंकि पिछले महीने नवंबर में हुए उपचुनाव में भाजपा ने सत्तारूढ़ बीजू जनता दल को हरा कर जीत हासिल की थी। भद्रक इलाके में आने वाली धामनगर विधानसभा सीट पिछले चुनाव में भाजपा ने जीती थी और उपचुनाव में भी उसने यह सीट जीत ली। इस लिहाज से यह बड़ी बात नहीं होनी चाहिए थी लेकिन बीजू जनता दल का रिकॉर्ड है कि वह 2009 के बाद हर उपचुनाव में जीती है। सो, धामनगर हारने के बाद वह सावधान हो गई और पद्मपुर सीट पर बेहतर रणनीति के साथ लड़ी है। पद्मपुर सीट पर बीजद विधायक बिजय रंजन सिंह बरिहा जीते थे, जिनके निधन से यह सीट खाली हुई है। इसलिए बीजद के लिए यह और प्रतिष्ठा वाला मुकाबला है।
राजस्थान की सरदारशहर विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ है। यह सीट पिछले चुनाव में कांग्रेस ने जीती थी और कांग्रेस के भंवरलाल शर्मा के निधन से सीट खाली हुई है। पार्टी में चल रही गुटबाजी और प्रभारी महासचिव अजय माकन के इस्तीफे के बीच चुनाव हुआ है। अशोक गहलोत सरकार के लिए यह सीट बहुत प्रतिष्ठा वाली है। ऐसे ही छत्तीसगढ़ की भानुप्रतापपुर सीट कांग्रेस के मनोज सिंह मांडवी के निधन से खाली हुई थी। सो, भूपेश बघेल सरकार के लिए भी यह सीट बचाने की बड़ी चुनौती है।
बिहार में एक और उत्तर प्रदेश में दो विधानसभा सीटों पर उपचुनाव हुआ है और लोकसभा की एक सीट पर भी उपचुनाव हुआ है। लेकिन दोनों राज्य सरकारों के लिए यह मामला वैसा नहीं है, जैसा बाकी तीन राज्यों में था। बिहार में विधानसभा चुनाव 2025 के अंत में होना है और उत्तर प्रदेश में तो विधानसभा अभी आठ महीने पहले ही बनी है। इसके बावजूद दोनों राज्यों में सत्तारूढ़ दल ने पूरी ताकत लगाई। उपचुनाव के प्रचार में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी गए तो बिहार में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अपनी सहयोगी पार्टी राजद के नेता व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव के साथ जाकर कुढ़नी में चुनाव प्रचार किया। यह सीट उनके लिए प्रतिष्ठा वाली इसलिए है क्योंकि राजद ने अपनी जीती हुई सीट उनकी पार्टी जदयू के लिए छोड़ी थी। राजद के अनिल कुमार सहनी के अयोग्य होने से यह सी खाली हुई थी। इस सीट के नतीजे का बिहार की राजनीति पर बड़ा असर होगा।
सरकारों के लिए उपचुनाव के नतीजे अहम
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