पिछले सात साल में भारत में वैसे तो हर तरफ गिरावट हुई है लेकिन आंकड़ों की गुणवत्ता में सबसे ज्यादा गिरावट हुई है। कई बार अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी भारत को इसकी वजह से शर्मिंदगी झेलनी पड़ी है। देश के हर आंकड़ें पर सवाल उठ रहे हैं। लेकिन ऐसा लग रहा है कि सरकार को आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार की जरूरत नहीं महसूस हो रही है, बल्कि वह मौजूदा स्थिति से संतुष्ट है। तभी आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार के लिए पिछले बजट में आवंटित राशि को लगभग शून्य कर दिया गया है। पिछले बजट में भी पता नहीं कैसे सरकार ने एक बड़ी रकम इसके लिए आवंटित कर दी थी। quality of the data
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पिछले साल यानी 2021-22 में कोरोना महामारी के बीच पेश हुए पहले बजट में केंद्र सरकार ने आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार के लिए 28 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया था। इसे नेशनल प्रोग्राम फॉर इम्प्रूविंग क्वालिटी ऑफ स्टैटिस्टिक्स इन इंडिया का नाम दिया गया था। इस मद में 28 करोड़ रुपए दिए गए लेकिन संशोधित बजट अनुमान से पता चला है कि आंकड़ों की गुणवत्ता सुधारने के लिए इसमें कोई रकम खर्च नहीं की गई। तभी अगले साल के बजट में इस मद में आवंटन पूरी तरह से खत्म कर दिया गया है। आंकड़ों की गुणवत्ता के लिए एक लाख रुपए की एक टोकन रकम तय की गई है। सोचें, कहां 28 करोड़ का आवंटन था और कहां एक लाख रुपया!
आंकड़ों की गुणवत्ता में सुधार जरूरी नहीं
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