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राहुल के आरोपों में सचाई तो है!

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मंगलवार को संसद में गौतम अदानी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संबंधों को लेकर कई गंभीर आरोप लगाए। उन्होंने अपने 50 मिनट के भाषण में कोई 60 बार अदानी का नाम लिया। उन्होंने सरकारी मदद से अदानी को आगे बढ़ाने का आरोप लगाया और कई घटनाओं का साफ जिक्र किया। लेकिन भाजपा या सरकार की ओर से इसका जवाब नहीं दिया जा रहा है। पूरी सरकार और भाजपा राहुल के पीछे पड़ी लेकिन किसी ने उनके उठाए मुद्दों का जवाब नहीं दिया। केंद्रीय मंत्री किरेन रिजीजू से लेकर स्मृति ईरानी तक और रविशंकर प्रसाद से लेकर निशिकांत दुबे तक ने राहुल पर हमला किया पर जवाब किसी ने नहीं दिया। उलटे राहुल के खिलाफ विशेषाधिकार का नोटिस दे दिया।

राहुल ने अपने भाषण में कहा कि मुंबई हवाईअड्डा जीवीके कंपनी के पास था, जिसके ऊपर दबाव डाल कर वह हवाईअड्डा अदानी समूह को दिलाया गया। सरकार और भाजपा की बजाय इसका जवाब जीवीके समूह ने दिया और कहा कि उसके ऊपर कोई दबाव नहीं था। कंपनी ने कहा कि उसे हवाईअड्डा बेचना ही था। लेकिन तथ्य कुछ और कहानी कहते हैं। जीवीके समूह ने अदानी से अपना हवाईअड्डा बचाने के लिए अक्टूबर 2019 में निवेशकों के साथ एक समझौता किया था। लेकिन 27 जून 2020 को जीवीके समूह के मालिक जीवीके रेड्डी और उनके बेटे संजय रेड्डी के खिलाफ सीबीआई ने एक एफआईआर दर्ज की और उसके 10 दिन बात सात जुलाई को प्रवर्तन निदेशालय ने छापे मारे और पिता-पुत्र के खिलाफ धन शोधन की जांच शुरू की और इसके कोई दो महीने बाद 31 अगस्त 2020 को जीवीके समूह ने मुंबई हवाईअड्डा और नवी मुंबई ग्रीनफील्ड हवाईअड्डा अदानी समूह को सौंप दिया। इस क्रोनोलॉजी से क्या समझ में आता है!

इसी तरह राहुल गांधी ने आरोप लगाया कि नियमों को ताक पर रख कर देश के छह मुनाफा कमाने वाले हवाईअड्डे अदानी समूह को दे दिए गए। राहुल के इस आरोप में भी सचाई दिखती है क्योंकि भारत सरकार के कम से कम दो विभागों ने सभी छह हवाईअड्डे एक ही कंपनी को देने से मना किया था। वित्त मंत्रालय के तहत आने वाले आर्थिक मामलों के विभाग यानी डीईए और नीति आयोग दोनों ने इस पर आपत्ति की थी।

दिसंबर 2018 में जब छह हवाईअड्डों- जयपुर, लखनऊ, अहमदाबाद, गवाहाटी, मेंगलुरू और तिरूवनंतपुरम को निजी हाथ में देने की प्रक्रिया शुरू हुई तो पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप एपरेजल कमेटी की पहली बैठक में ही डीईए के एक नोट की चर्चा ही, जिसमें डीईए ने लिखा था कि ये सभी छह हवाईअड्डे बहुत कमाई करने वाले हैं और इसलिए किसी एक निजी कंपनी को दो से ज्यादा हवाईअड्डा नहीं दिया जाना चाहिए। अपनी बात के समर्थन में डीईए ने दिल्ली और मुंबई हवाईअड्डे की मिसाल दी थी। यूपीए सरकार के समय टेंडर के बाद दोनों हवाईअड्डे जीएमआर को मिले थे लेकिन एक ही कंपनी को दोनों बड़े हवाईअड्डे नहीं देने की योजना के मुताबिक मुंबई हवाईअड्डा दूसरे को दिया गया। नीति आयोग ने दूसरी चिंता जताई थी। उसने कहा था कि टेंडर डालने वालों के लिए हवाईअड्डे के संचालन का पूर्व अनुभव होना चाहिए। लेकिन डीईए और नीति आयोग दोनों की आपत्तियों को खारिज कर दिया गया और अंत में सभी छह हवाईअड्डे अदानी समूह को मिले।

By NI Political Desk

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