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भाजपा से ज्यादा हिमंता की साख दांव पर

त्रिपुरा सहित पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनावों में भाजपा से ज्यादा असम के मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा सरमा की साख दांव पर है। वे असम का मुख्यमंत्री होने के साथ साथ उत्तर पूर्व जनतांत्रिक गठबंधन यानी नेडा के अध्यक्ष भी हैं। इसके अलावा पार्टी ने पूर्वोत्तर के सभी राज्यों की जिम्मेदारी सरमा को सौंपी है। इसलिए पार्टी के राष्ट्रीय नेताओं से ज्यादा हिमंता सरमा इन राज्यों में मेहनत कर रहे हैं। उनको पता है और भाजपा को भी पता है कि भले ये राज्य छोटे हैं, लेकिन इनके नतीजों का बड़ा असर देश की राजनीति पर होगा। एक तो इस साल 10 राज्यों के चुनाव हैं और अगले साल लोकसभा का चुनाव होना है। इसलिए साल के शुरू में ही पार्टी कोई निगेटिव मैसेज नहीं चाहती है।

सरमा ने त्रिपुरा, नगालैंड और मेघालय में अपने को झोंका है। त्रिपुरा की स्थानीय जनजाति वाली एक पार्टी के साथ भाजपा का पहले से तालमेल है। अब सरमा ने दूसरी जनजाति पार्टी तिपरा मोथा के नेता प्रद्योत देबबर्मा से मुलाकात की है। वे उनको तालमेल के लिए पटा रहे हैं। वृहत्तर त्रिपुरा की मांग करने वाले देबबर्मा ने अभी कोई वादा नहीं किया है। उलटे उन्होंने फिर अपनी मांग दोहराई है और राज्य में हो रही हिंसा को लेकर सरकार पर हमला किया है। सरमा अगर उनको गठबंधन में ले आते हैं उसका बड़ा असर होगा। उनके सामने असली चुनौती मेघालय की है, जहां सत्तारूढ़ एनपीपी से तालमेल खत्म हो गया है और भाजपा सभी सीटों पर अकेले लड़ने वाली है। सरमा की चुनौती सभी 60 सीटों पर लड़ने वाले उम्मीदवार खोजने की है। नगालैंड में भी यह समस्या रहेगी।

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