
यह कतई समझ में आने वाली बात नहीं है कि समाजवादी पार्टी ने 10 उम्मीदवारों की पहली सूची क्यों जारी की? ऐसी क्या मजबूरी थी, जो उसने 10 उम्मीदवारों की सूची जारी की? पहले चरण में 58 सीटों पर मतदान होना है और उसके लिए भी अभी नामांकन शुरू नहीं हुए थे तब भी 13 जनवरी को सपा ने 10 और राष्ट्रीय लोकदल ने 19 सीटों के उम्मीदवारों की घोषणा की। सपा के 10 उम्मीदवारों में से सात मुस्लिम नाम थे। यह सही है कि स्थानीय समीकरण के हिसाब से यह सही है और इन्हीं को टिकट देना था। लेकिन क्या अच्छा नहीं होता अगर समाजवादी पार्टी इनके नाम की घोषणा पूरी सूची के साथ करती? उसके जो पहले 10 उम्मीदवार सामने आए उनके नाम हैं- कैराना से नाहिद हसन, चरथावल से पंकज मलिक, किठौर से शाहिद मंजूर, मेरठ से रफीक अंसारी, साहिबाबाद से अमरपाल शर्मा, धौलाना से असम चौधरी, कोल से सलमान सईद, अलीगढ़ से सफर आलम, आगरा कैंट से कुंवर सिंह वकील और बाह से मधुसूदन शर्मा। up election Muslim candidates
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सपा के 10 में से सात मुस्लिम उम्मीदवारों के नाम आने के बाद ही भाजपा ने इस पर राजनीति शुरू कर दी। सोशल मीडिया में लोगों को बताया गया कि सपा का राज आएगा तो मुस्लिम सबसे महत्वपूर्ण होंगे। इसका इस्तेमाल सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए किया जाने लगा। उसके बाद भाजपा ने इन मुस्लिम उम्मीदवारों की प्रोफाइलिंग शुरू कर दी। पुराने मामले निकाल कर बताया जा रहा है कि इनमें से किस मुस्लिम उम्मीदवार के ऊपर कितने और किस तरह के मुकदमे हुए थे। इस तरह भाजपा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के साथ साथ यह बता रही है कि मुस्लिम अपराधी होते हैं और भाजपा की सरकार ने सबको सीधा किया हुआ है। इससे कानून व्यवस्था का भाजपा का पसंदीदा मुद्दा चर्चा में आता है।