उत्तर प्रदेश में कांग्रेस पार्टी की बड़ी फजीहत हो रही है। पार्टी के महासचिव और उत्तर प्रदेश की प्रभारी प्रियंका गांधी ने कह दिया कि प्रदेश में कांग्रेस समान विचारधारा वाली पार्टियों के साथ तालमेल के लिए तैयार है। यह कहे हुए एक महीना हो गया है और अभी तक किसी भी विचारधारा की किसी पार्टी ने कांग्रेस से तालमेल की पहल नहीं की है। परदे के पीछे से कांग्रेस के नेता जी-तोड़ कोशिश कर रहे हैं कि समाजवादी पार्टी के साथ तालमेल हो जाए। लेकिन कामयाबी नहीं मिल रही है। यहां तक कि प्रदेश की कोई छोटी पार्टी भी कांग्रेस के साथ तालमेल के लिए तैयार नहीं है। uttar pradesh assembly election
भारतीय जनता पार्टी ने अपने तालमेल का ऐलान कर दिया। उसकी दोनों पुरानी सहयोगी पार्टियां उसके साथ हैं। अपना दल और निषाद पार्टी के साथ भाजपा का तालमेल हो गया है। हालांकि भाजपा की एक सहयोही सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी उससे अलग हो गई है लेकिन बाकी दोनों पार्टियां साथ लड़ेंगे। भाजपा ने निषाद पार्टी के नेता संजय निषाद को राज्य सरकार में मंत्री भी बना दिया है। अपना दल की अनुप्रिया पटेल केंद्र में मंत्री हैं। इतना ही नहीं प्रदेश की छोटी पार्टियों ने भी तालमेल कर लिया है। असदुद्दीन ओवैसी और ओमप्रकाश राजभर की पार्टी के मिल कर लड़ने की बात है, जिसमें चंद्रशेखर की भीम आर्मी भी शामिल हो सकती है। राष्ट्रीय लोकदल का भी तालमेल सपा के साथ लगभग तय है। अकेले कांग्रेस है, जिसे कोई सहयोगी नहीं मिल रहा है।
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कांग्रेस की फजीहत इतनी ही नहीं है। एक के बाद एक प्रियंका गांधी वाड्रा के कार्यक्रम रद्द हो रहे हैं। किसानों के विरोध का कांग्रेस ने समर्थन किया है और इसका फायदा उठाने के लिए पार्टी ने 29 सितंबर को मेरठ में प्रियंका की रैली का आयोजन किया था। लेकिन अब यह रैली रद्द कर दी गई है। इसी तरह दो अक्टूबर को वाराणसी में एक रैली होनी थी, जिसे आगे बढ़ा दिया गया है। सात अक्टूबर को प्रियंका को आगरा में रैली करनी थी लेकिन वह रैली भी रद्द कर दी गई है। सोचें, पार्टी अपनी प्रियंका जैसी महासचिव के लिए भी रैली नहीं आयोजित कर पा रही है।
कहा जा रहा है कि प्रियंका खुद ही राज्य की राजनीति से दूर होती जा रही हैं। पिछले दिनों उन्होंने हिमाचल प्रदेश में छुट्टियां मनाईं। हिमाचल के छरबड़ा में उनका घर है, जो बरसों की मेहनत से बना है। वहां से लौट कर वे राजस्थान की राजनीति में बिजी हो गईं। उससे पहले वे पंजाब की राजनीति करती रही थीं और छत्तीसगढ़ में भी पार्टी का विवाद सुलझाने में सक्रिय भूमिका निभा रही थीं। तभी कांग्रेस के नेता मान रहे हैं कि उनको राष्ट्रीय राजनीति में ही सक्रिय होना चाहिए और उत्तर प्रदेश की चिंता छोड़ देनी चाहिए। उनको उत्तर प्रदेश की राजनीति से निकालने की भी तैयारी बताई जा रही है ताकि उनके ब्रांड को ज्यादा नुकसान न हो। कांग्रेस के ज्यादातर नेता प्रदेश में पार्टी के लिए कोई संभावना नहीं देख रहे हैं।
यूपी में कांग्रेस की फजीहत
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