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चुनावी मजबूरी में समझौते

ByNI Political,
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चुनावी मजबूरी में समझौते
उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में किसानों की मौत पर जितनी फुर्ती से समझौता हुआ है वह मिसाल के लायक है। लेकिन काश, ऐसे समझौते हर समय होते तो इतनी समस्या नहीं आती और न लोगों को इतने लंबे आंदोलन करने पड़ते। उत्तर प्रदेश में चार महीने के बाद विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और उससे पहले राज्य सरकार और भाजपा नेतृत्व दोनों नहीं चाहते कि आंदोलन का नया मोर्चा खुले। इसलिए किसानों पर भाजपा नेता और उनके समर्थकों द्वारा गाड़ी चढ़ाने की घटना के 24 घंटे के अंदर समझौता कर लिया गया। सरकार ने हर मृतक के परिजन को 45-45 लाख रुपए और एक सदस्य को नौकरी देने का वादा किया। इसके अलावा आरोपी भाजपा नेता के ऊपर तत्काल मुकदमा दर्ज कराया गया। मुकदमे का बाद में जो भी हस्र हो लेकिन अभी तो पुलिस ने फटाफट कार्रवाई की। Uttar Pradesh Assembly Elections सोचें, दिल्ली में केंद्रीय कानूनों के खिलाफ किसान 10 महीने से आंदोलन पर बैठे हैं और इस दौरान सैकड़ों किसानों की मौत हुई है। किसान भूख से, बीमारी से, दुर्घटना से मरे लेकिन किसी के कान पर जूं तक नहीं रेंगी। किसान आंदोलन का एक केंद्र उत्तर प्रदेश में है और दूसरा हरियाणा में। लेकिन केंद्र या उत्तर प्रदेश और हरियाणा सरकार में से किसी ने जरूरी नहीं समझा कि किसानों की सुध ली जाए। लेकिन लखीमपुर खीरी की घटना पर तत्काल संज्ञान लिया गया क्योंकि इससे बात बिगड़ रही थी। cabinet expansion cm yogi

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इस घटना से दो-चार दिन पहले ही कानपुर के एक कारोबारी की गोरखपुर में मौत हो गई थी। उसे पुलिस ने किसी संदेह में पकड़ा था और बताया जा रहा है कि बुरी तरह से पिटाई की थी, जिसकी वजह से उसकी मौत हो गई। इस मामले में भी खबर फैलती और विवाद होता उससे पहले मुख्यमंत्री ने मारे गए कारोबारी की पत्नी से मुलाकात की और उसे 10 लाख रुपए का मुआवजा और एक सरकारी नौकरी का वादा कर दिया। इसके बाद पुलिस की आलोचना कर रही महिला योगी आदित्यनाथ को अपने अभिभावक जैसा बता कर गुणगान करने लगी। अगर राज्य में चुनाव नहीं होते तो क्या ऐसा होना संभव था?
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