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भाजपा को आरक्षण का सहारा

ByNI Political,
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भाजपा को आरक्षण का सहारा
UP elections reservation caste उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भाजपा का एकमात्र सहारा आरक्षण और जातियों की राजनीति है। देश और धर्म से जो राजनीति शुरू हुई तो वह जातियों तक आ गई है। ऐसा लग रहा है कि उत्तर प्रदेश सरकार की पांच साल की एंटी इन्कंबैंसी और केंद्र सरकार की सात साल की एंटी इन्कंबैंसी से पार पाने में भाजपा को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेंडा पर्याप्त नहीं लग रहा है। इसलिए उसने जातियों की यथास्थिति को छेड़ने का दांव चला है, अपने को आरक्षण का चैंपियन बताया है और आरक्षण के दायरे का विस्तार किया है। Read also पंजाब में किसान राजनीति करेंगे! भाजपा ने ही नहीं, बल्कि आरक्षण की समीक्षा की बात करने वाले राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ ने भी खुद को आरक्षण का चैंपियन बताया है। उत्तर प्रदेश में भाजपा के लिए चुनाव प्रबंधन के काम में सक्रिय भूमिका निभा रहे आरएसएस के नंबर दो पदाधिकारी दत्तात्रेय होसबाले ने आरक्षण को लेकर जो कहा है वह उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से भाजपा और आरएसएस दोनों की बेचैनी दिखाता है। होसबाले ने कहा है कि राष्ट्रीय स्वंयसेवक संघ आरक्षण का प्रबल समर्थक है। उन्होंने भारत के इतिहास में दलित जातियों का महत्व बताते हुए कहा कि दलितों के इतिहास के बिना भारत का इतिहास अधूरा है, भारत का इतिहास दलितों के इतिहास से अलग नहीं है। Read also सिर्फ रक्षा मंत्रालय की सफाई का क्या मतलब असल में बिहार में 2015 के विधानसभा चुनाव से पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत ने आरक्षण की समीक्षा की जरूरत बताई थी। तब केंद्र में नरेंद्र मोदी की सत्ता के नए-नए दिन थे और कहीं न कहीं संघ को लग रहा था कि वह जाति की पारंपरिक राजनीति को बदलेगी। लेकिन बिहार में भाजपा इस बुरी तरह से हारी कि उसके बाद पूरी पार्टी और संघ आरक्षण व जाति की विचारधारा पर ही आ गए। अब संघ और भाजपा दोनों उत्तर प्रदेश में आरक्षण का दांव आजमा रहे हैं। तभी प्रधानमंत्री ने अपनी मंत्रिपरिषद में फेरबदल की तो इस बात का प्रचार कराया कि 27 ओबीसी और आठ दलित मंत्री बने हैं। Read also ट्विटर से सुलझ गया केंद्र का मामला! इसके बाद में प्रधानमंत्री ने दलित आरक्षण का दायरा बढ़ाना शुरू किया। उन्होंने मेडिकल में दाखिले के केंद्रीय कोटे में ओबीसी का 27 फीसदी आरक्षण लागू किया और साथ ही इसमें गरीब सवर्णों के लिए भी 10 फीसदी आरक्षण का प्रावधान किया। अब केंद्र सरकार ने राज्यों को ओबीसी की सूची बनाने का अधिकार देने का कानून पास कराया है। इसके लिए संविधान का 127वां संशोधन विधेयक लोकसभा से पास हो गया है। यह कानून बनने के बाद राज्य सरकारें ओबीसी की सूची अपने हिसाब से बना सकती हैं। हालांकि अभी तत्काल उत्तर प्रदेश में सूची बदले जाने की कोई संभावना नहीं है लेकिन सरकार चाहे तो बदलाव कर सकती है। इस कानून के जरिए केंद्र ने यही मैसेज दिया है कि वह ओबीसी के हितों का सबसे ज्यादा ध्यान रख रही है। सो, कुल मिला कर कहा जा सकता है कि आरक्षण और जातियों की राजनीति ही इस बार उत्तर प्रदेश के चुनाव में चलने वाली है। इसकी बिसात भाजपा ने बिछा दी है।
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