
जब किसी पार्टी का सर्वोच्च नेता अपने लड़ने के लिए सुरक्षित सीट तलाशने लगे तो समझना चाहिए कि हालात बहुत अनुकूल नहीं हैं। हालांकि उत्तराखंड में कांग्रेस के लिए हालात बहुत अच्छे हैं लेकिन पार्टी की चुनाव अभियान समिति के अध्यक्ष और मुख्यमंत्री पद के अघोषित दावेदार हरीश रावत के सुरक्षित सीट की तलाश में रामनगर जाने से माहौल बिगड़ा है। रामनगर सीट से पार्टी के पुराने नेता रंजीत रावत तैयारी कर रहे थे। उनकी टिकट कटवा कर हरीश रावत ने अपनी टिकट करवाई है। इसे लेकर इतना विवाद था कि रावत का नाम पहली सूची में नहीं आया। भाजपा के नेता और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के सीट बदलने की चर्चाओं के कारण जैसे भाजपा का माहौल बिगड़ा वैसे ही रावत की वजह से बिगड़ा है। uttarakhand assembly harish rawat
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रावत जब फरवरी 2014 में मुख्यमंत्री बने तब वे धारचूला सीट से उपचुनाव लड़े और जीते। लेकिन 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने धारचूला सीट छोड़ दी। मुख्यमंत्री रहते वे हरिद्वार ग्रामीण और किच्छा, दो सीटों से लड़े और दोनों से हार गए। अब फिर चुनाव आया है तो वे न धारचूला लड़ रहे हैं और हरिद्वार ग्रामीण या किच्छा। अब वे एक चौथी सीट पर पहुंच गए हैं। हरीश रावत 2009 में हरिद्वार सीट से लोकसभा का चुनाव जीते थे लेकिन 2019 में सीट बदल कर नैनीताल-उधम सिंह नगर सीट पर लड़ने चले गए और हार गए। सो, सीट बदलना उनके लिए बहुत कामयाब नहीं रहा है। फिर भी वे सीट बदल कर सुरक्षित सीट मान कर रामनगर पहुंचे हैं और वहां के नेता रंजीत रावत को साल्ट सीट पर लड़ने का प्रस्ताव दिया है। लेकिन अगर रंजीत रावत निर्दलीय रामनगर से लड़ गए तो हरीश रावत का क्या होगा?