
देश के कई और राज्यों की तरह उत्तराखंड की भी यह खासियत है कि वहां कोई भी पार्टी सत्ता में वापसी नहीं करती है। चाहे कितने भी मुख्यमंत्री बदल दिए जाएं आज तक कोई भी पार्टी लगातार दूसरी बार सत्ता में नहीं लौटी है। मुख्यमंत्री बदलने का दांव भाजपा भी आजमा चुकी है और कांग्रेस भी। कांग्रेस ने 2012 में चुनाव जीतने के बाद विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बनाया था और चुनाव से कुछ समय पहले उनको हटा कर हरीश रावत को बना दिया। लेकिन हरीश रावत भी सत्ता में वापसी नहीं करा पाए। ऐसे ही भाजपा ने 2007 मे चुनाव जीतने के बाद भुवन चंद्र खंडूरी को सीएम बनाया फिर उनको हटा कर रमेश पोखरियाल निशंक को बनाया और फिर चुनाव से पहले खंडूरी को बनाया लेकिन यह दांव भी कारगर नहीं रहा।
भाजपा ने यह दांव पहली बार में भी आजमाया था। नया राज्य बनने के बाद नित्यानंत स्वामी को मुख्यमंत्री बनाया गया था लेकिन 2002 के चुनाव से ऐन पहले भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। उसी तरह भाजपा ने इस बार चुनाव से एक साल पहले त्रिवेंद्र सिंह रावत को हटा कर तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया है। तभी सवाल है कि क्या रावत इस जिंक्स को तोड़ पाएंगे? वे संगठन के माहिर नेता माने जाते हैं और पहाड़ी क्षेत्रों में उनकी बहुत पकड़ है। संघ के प्रचारक के तौर पर उन्होंने पहाड़ों में बहुत काम किया है। उत्तराखंड की 70 में से 30 सीटें पहाड़ की हैं। दूसरे, राज्य की बहुसंख्यक आबादी ठाकुरों की है। ऐसे में अगर रावत पहाड़ में अपनी पकड़ कायम रखते हैं और ठाकुर वोट एकजुट कर पाते हैं तभी कुछ बात बनेगी।