आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के चीफ जस्टिस एसए बोबडे को चिट्ठी लिखे एक महीने हो गए। ठीक एक महीना पहले 10 अक्टूबर को जगन मोहन रेड्डी ने चीफ जस्टिस को एक चिट्ठी लिखी थी, जिसमें उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के दूसरे सबसे वरिष्ठ जज पर आरोप लगाए थे कि वे राज्य सरकार को अस्थिर करने का प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के चार जजों पर भी आरोप लगाया था और कहा था कि वे पिछले मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू के हिसाब से काम कर रहे हैं। जगन ने चिट्ठी लिखी थी और उनके प्रधान सलाहकार अजय कल्लम ने प्रेस कांफ्रेंस करके चिट्ठी जारी की थी। एक महीने बाद तक इस मामले में कोई पहल नहीं हुई है। न अवमानना का मामला बनाया गया है और न मुख्यमंत्री की बातों का संज्ञान लिया गया है।
इस मामले में देश के सबसे बड़े कानूनी अधिकारी अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अवमानना का मामला चलाने की सलाह नहीं दी है। उन्होंने सिर्फ इतना कहा है कि यह मामला सुप्रीम कोर्ट के पाले में है क्योंकि मुख्यमंत्री ने सीधे चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिखी है और अगर अवमानना वाला कोई कंटेंट हैं तो वह उस चिट्ठी में ही है। इसलिए इस पर फैसला भी सुप्रीम कोर्ट को ही करना है कि वह स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना का मामला चलाना चाहे तो चलाए। यानी अटॉर्नी जनरल ने अपने को इससे अलग कर लिया।
यह पहला मामला नहीं है, जब अटॉर्नी जनरल ने अवमानना मामले में इस किस्म का रवैया अख्तियार किया है। उन्होंने टीवी के पत्रकार राजदीप सरदेसाई की टिप्पणियों के मामले में भी अवमानना का मुकदमा नहीं चलाने की सलाह दी थी और मशहूर वकील प्रशांत भूषण के मामले में भी अटॉर्नी जनरल ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह दी थी कि उन्हें चेतावनी देकर मामला बंद किया जाए। हालांकि अदालत ने प्रशांत भूषण के ऊपर एक रुपए का जुर्माना लगाया। ऐसा लग रहा है कि अटॉर्नी जनरल अवमानना के कानून और उस पर अमल को लेकर बहुत सहज नहीं हैं।
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