क्या प्रशांत किशोर की जिह्ना पर सरस्वती विराजमान थीं, जब उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में भाजपा और तृणमूल कांग्रेस के बीच का अंतर तभी कम हो सकता है, जब अर्धसैनिक बलों के ऊपर हमला हो जाए या ऐसी कोई घटना हो जाए? उन्होंने यह बात कुछ समय पहले देश के सबसे तेज चैनल को दिए इंटरव्यू में कही थी। उनसे पूछा गया था कि क्या वे अब भी इस बात पर कायम हैं कि भाजपा एक सौ का आंकड़ा नहीं पार कर पाएगी? इस पर उन्होंने कहा था कि वे अपनी बात पर कायम हैं, लेकिन एक ही स्थिति में भाजपा की सीटें बढ़ सकती हैं, जब अर्धसैनिक बलों पर हमला हो जाए। यह संयोग है कि तीसरे चरण के मतदान से ठीक पहले छत्तीसगढ़ में माओवादियों के साथ अर्धसैनिक बलों की एक मुठभेड़ हो गई, जिसमें 22 जवान मारे गए औऱ सीआऱपीएफ की कोबरा बटालियन के एक जवान को माओवादियों ने अगवा कर लिया।
अब सवाल है कि क्या प्रशांत किशोर भविष्य देख रहे थे या भाजपा के साथ चुनाव रणनीतिकार के तौर पर काम कर चुके होने की वजह से वे कुछ बातें जानते थे या पिछले कुछ समय से हर चुनाव से पहले होने वाली इस किस्म की घटनाओं के विश्लेषण के आधार पर उन्होंने यह दावा किया था? इसका जवाब प्रशांत किशोर ही दे सकते हैं। लेकिन असली मुद्दा यह है कि अर्धसैनिक बलों पर हमला किस तरह से भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है? क्या इससे यह नैरेटिव नहीं बनता है कि भाजपा की सरकार में सुरक्षा बल भी सुरक्षित नहीं हैं? इसका जवाब आने वाले दिनों में मिलेगा। नक्सलियों ने कोबरा बटालियन के एक जवान को अगवा किया है और हाई की बातचीत के लिए वार्ताकार नियुक्त करने को कहा है। दूसरी ओर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने नक्सलियों को पूरी तरह से खत्म करने की हुंकार भरी है। तभी यह देखना दिलचस्प है कि सरकार वार्ता करती है या सीधी कार्रवाई का ऐलान करके निर्णायक लड़ाई के लिए उतरती है। एक संभावना नक्सलियों के किसी इलाके में बड़ी कार्रवाई का भी है। बालाकोट टाइप की कोई चीज छत्तीसगढ़ के जंगलों में देखने को मिल सकती है।