पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी ज्यादा टूटी है या भारतीय जनता पार्टी? दिल्ली में पत्रकार इसे एक बेवकूफाना सवाल समझेंगे पर पश्चिम बंगाल में जमीनी स्तर पर चुनाव कवर कर रहे स्थानीय पत्रकारों का मानना है कि राज्य में भाजपा ज्यादा टूटी और बिखरी है। उसका टूटना और बिखरना ज्यादा चर्चा में नहीं है तो उसके कई कारण हैं। सबसे पहला कारण यह है कि भाजपा पश्चिम बंगाल में सिर्फ तीन विधायकों वाली पार्टी है। इसलिए अगर कोई विधायक नहीं टूटा तो वह मीडिया में बड़ी खबर नहीं होती है। ममता बनर्जी के पास सवा दो सौ विधायक थे और उनमें से कोई विधायक पार्टी छोड़ता था तो वह खबर बनती थी। दूसरा कारण मीडिया का रवैया है। अगर ममता बनर्जी के पार्टी ऑफिस से कोई कौवा उड़ कर भाजपा के दफ्तर पर बैठ जाए तब भी दिल्ली का मीडिया इसे ममता बनर्जी के लिए बड़ा झटका बताएगा।
हकीकत यह है कि जमीनी स्तर पर भाजपा बहुत बिखरी हुई पार्टी है। नंदीग्राम में जहां सबसे बड़ी लड़ाई हुई है वहां भी भाजपा की लगभग पूरी जिला ईकाई ने अंदरखाने या खुल कर भाजपा प्रत्याशी शुभेंदु अधिकारी का विरोध किया। भाजपा के जिले के नेताओं का कहना था कि 2007 से यानी पिछले करीब 15 साल से वे अधिकारी परिवार से लड़ रहे थे और भाजपा नेतृत्व ने उन्हीं को लाकर उनके सिर पर बैठा दिया। यह स्थिति लगभग हर उस जिले में है, जहां भाजपा ने तृणमूल कांग्रेस या किसी दूसरी पार्टी को लाकर ज्यादा तरजीह दी है और चुनाव लड़ने के लिए टिकट दी है। एक-एक जिले के सैकड़ों कार्यकर्ता भाजपा छोड़ कर तृणमूल में शामिल हुए पर यह खबर नहीं बनी क्योंकि उनमें कोई विधायक नहीं था और जो विधायक नहीं है उसे मुख्यधारा का मीडिया नेता नहीं मानता है। यहां तक कि शुभेंदु अधिकारी के खुद को मुख्यमंत्री दावेदार के तौर पर पेश करने से नाराज दिलीप घोष ने सार्वजनिक बयान दिया, फिर भी यह नैरेटिव नहीं बना कि भाजपा के अंदर में कितनी कलह है।