हाल के दिनों में वैसे तो सभी संवैधानिक संस्थाओं की गरिमा और साख गिरी है लेकिन केंद्रीय चुनाव आयोग की साख में अभूतपूर्व गिरावट हुई है। दिलचस्प बात यह है कि आयोग को भी अपनी साख ठीक करने की कोई खास चिंता नहीं दिख रही है। भाजपा के नेता जरूर विपक्ष के नेताओं से कह रहे हैं कि वे चुनाव आयोग का अपमान कर रहे हैं पर चुनाव आयोग के अपने कामकाज से नहीं लग रहा है कि उसको अपने मान अपमान की चिंता है। पिछले दिनों चुनाव आयोग ने भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी को नोटिस जारी करके एक बार फिर यह साबित किया कि उसके यहां कैसे काम हो रहा है।
असल में शुभेंदु अधिकारी ने 27 मार्च को एक भाषण में बंगाल के लिए मुस्लिम मतदाताओं के लिए पाकिस्तानी आदि शब्दों का प्रयोग किया था। लेकिन चुनाव आयोग उस पर खामोश रहा था। पिछले दिनों जब आयोग ने सांप्रदायिक भाषण के लिए ममता बनर्जी को नोटिस दिया तब यह सवाल उठा कि उसने अधिकारी को नोटिस क्यों नहीं दिया था। सो, आनन-फानन में 10 दिन के बाद अधिकारी को भी नोटिस जारी कर दिया। सोचें, 10 दिन बाद आयोग के अधिकारियों की नींद खुली और उन्होंने एक नोटिस जारी कर दिया। इसके बाद ही तृणमूल कांग्रेस के नेता डेरेक ओ ब्रायन ने ईसी यानी इलेक्शन कमीशन के लिए नए विशेषण का प्रयोग किया- एक्सट्रीमली कंप्रोमाइज्ड! यानी पूरी तरह से सरकार से मिला हुआ संगठन! वैसे सोशल मीडिया में पहले से ‘केंद्रीय चुनाव आयोग’ के लिए ‘केंचुआ’ का विशेषण चल रहा है। पिछले कुछ समय से आयोग का ऐसा ही आचरण देखने को भी मिल रहा है।
चुनाव आयोग के लिए कैसे कैसे विशेषण!
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