पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष ममता बनर्जी ऐसा लग रहा है कि भाजपा से ज्यादा असदुद्दीन ओवैसी की एमआईएम को गंभीरता से ले रही हैं। उन्होंने ओवैसी से निपटने की तैयारियां तेज कर दी हैं। असल में पिछले दिनों ओवैसी ने बंगाल के लिए अपन राजनीतिक तैयारियों का खुलासा करते हुए दावा किया कि प्रदेश में मुकाबला भाजपा और एमआईएम के बीच होगा। ऐसा दावा उन्होंने राज्य की करीब 30 फीसदी मुस्लिम वोट को ध्यान में रख कर किया। बिहार के मुस्लिम बहुल इलाकों में मिली जीत से ओवैसी इस भरोसे में हैं कि भाजपा के खिलाफ मुस्लिम उन्हें ही वोट देंगे। दूसरी ओर ममता को चिंता है कि अगर मुस्लिम वोट में ओवैसी ने सेंध लगाई तो उनको मुश्किल होगी।
ओवैसी ने पश्चिम बंगाल के पहले दौरे में राज्य के बड़े मौलाना पीरजादा अब्बास सिद्दीकी से मुलाकात की। उन्होंने उनको अपनी पार्टी का चेहरा बनाने का ऐलान किया। वे हुगली जिले की फुरफुरा शरीफ के मौलाना हैं। दूसरी पार्टियां भी उनको अपने साथ लेने का प्रयास कर रही हैं। मौलाना ने ओवैसी के लौटने के बाद कहा कि वे कांग्रेस और लेफ्ट के साथ भी बात करने को तैयार हैं। इस बीच ममता बनर्जी ने ओवैसी की पार्टी तोड़ दी। ओवैसी की पार्टी के कार्यकारी प्रदेश अध्यक्ष एसके अब्दुल कलाम एमआईएम छोड़ कर तृणमूल में शामिल हो गए हैं। उनके साथ पार्टी के और भी नेता तृणमूल में गए हैं। ममता ने दूसरा दांव यह चला कि उन्होंने राज्य के सारे इमामों से एक साथ अपील कराई कि मुस्लिम मतदाता ओवैसी को वोट नहीं करें। वैसे भी ममता की पार्टी के नेताओं का मानना है कि बिहार में भाजपा का मुख्यमंत्री नहीं बनना था इसलिए मुस्लिम वोट बंटे, जबकि बंगाल में ऐसा नहीं है। इसलिए बंगाल में मुस्लिम वोट एकमुश्त तृणमूल को मिलेंगे।