केंद्रीय जांच एजेंसी, सीबीआई ने कमाल किया। सात साल पुराने एक मामले में तृणमूल कांग्रेस के दो मंत्रियों, एक विधायक और एक अन्य नेता के खिलाफ छापेमारी करके चारों को गिरफ्तार किया। जब सीबीआई की विशेष अदालत ने चारों को जमानत दे दी तो उसी दिन आधी रात को एजेंसी हाई कोर्ट में पहुंच गई, जमानत रद्द कराने और हाई कोर्ट ने भी निराश नहीं किया। सोचें, जब उच्च अदालतों का खुद का निर्देश है कि कोरोना वायरस की इस महामारी में बहुत जरूरी हो तभी किसी को गिरफ्तार करना है, फिर भी हाई कोर्ट ने सात साल पुराने एक मामले में, चार ऐसे नेताओं की जमानत रद्द की, जो कहीं भागे नहीं जा रहे थे और जिनका इस समय गिरफ्तार होना बहुत जरूरी भी नहीं था।
बहरहाल, यह कहानी की एक हिस्सा है। दूसरा हिस्सा ज्यादा दिलचस्प है। जिस नारद स्टिंग मामले में इन चार नेताओं को गिरफ्तार किया गया है उसी मामले में शुभेंदु अधिकारी और मुकुल रॉय भी आरोपी हैं। लेकिन चूंकि ये दोनों अब भारतीय जनता पार्टी में हैं इसलिए इनके ऊपर कोई कार्रवाई नहीं की गई। अब पता चला है कि इन दोनों ने इस बार चुनाव लड़ते समय दायर किए गए हलफनामे में इस मुकदमे का जिक्र भी नहीं किया है। सोचें, सभी उम्मीदवारों को चुनावी हलफनामे में अपनी संपत्ति, कर्ज और मुकदमों की जानकारी देनी होती है। लेकिन मुकुल रॉय और शुभेंदु अधिकारी ने अपने ऊपर रिश्वत लेने के लिए दर्ज हुए मुकदमे की जानकारी देना जरूरी नहीं समझा।
क्या उनको पता नहीं है कि केंद्रीय चुनाव आयोग इसके लिए उनके ऊपर कार्रवाई कर सकता है? मुकदमों की जानकारी छिपाने की बात साबित होने पर उनकी सदस्यता भी जा सकती है। पर ऐसा लग रहा है कि उनको यकीन है कि चुनाव आयोग ऐसा कुछ नहीं करेगा क्योंकि वे भाजपा के सदस्य हैं। इसलिए उन्होंने नारद स्टिंग ऑपरेशन के मुकदमे की जानकारी ही नहीं दी। इसके उलट तृणमूल कांग्रेस के जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया है उनमें से तीन से चुनाव लड़ा था और तीनों ने अपने हलफनामे में इस मुकदमे का जिक्र किया था। अब देखना है कि केंद्रीय चुनाव आयोग इस मामले में कब नोटिस जारी करता है और चेतावनी देकर दोनों को छोड़ देता है!
इस बीच शुभेंदु अधिकारी के स्टिंग का वीडियो फिर से वायरल होने लगा है। वे साफ-साफ कैमरे पर पांच लाख रुपए लेते दिख रहे हैं। लेकिन चूंकि उस समय वे सांसद थे इसलिए उनके खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी लोकसभा के स्पीकर को देनी है। कहा जा रहा है कि पिछले दो साल से स्पीकर के फैसले का इंतजार हो रहा है। सोचें, जो सीबीआई इतने धैर्य से लोकसभा स्पीकर के फैसले का इंतजार कर रही है उसने विधायकों को गिरफ्तार करने के लिए विधानसभा के स्पीकर की मंजूरी लेने की जरूरत ही नहीं समझी! स्पीकर-स्पीकर का फर्क होता है, कोई भाजपा का है तो कोई तृणमूल का है! बहरहाल, यह मामले केस स्टडी होने वाला है। इसमें उच्च अदालत से लेकर, केंद्रीय जांच एजेंसी, चुनाव आयोग और पीठासीन अधिकारी सबकी परीक्षा होने वाली है।
भाजपा में चले गए तो डर काहे का!
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