पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी का मैसेज बहुत साफ है। वे पहले की तरह केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी से लड़ना नहीं चाहती हैं। इसके उलट वे भाजपा के प्रति सद्भाव दिखा रही हैं और इसका बहुत साफ मकसद है। वे नहीं चाहती हैं कि राज्य का बहुसंख्यक हिंदू मतदाता उनको हिंदू विरोधी समझे। वे नरेंद्र मोदी पर हमला करके हिंदू मतदाताओं को नाराज करना और उन्हें पूरी तरह से भाजपा के पाले में भेज देने की राजनीति से बचना चाहती है। उनको पता है कि राज्य के अल्पसंख्यक मतदाताओं के सामने अब कम्युनिस्ट और कांग्रेस पार्टी का विकल्प नहीं है। इसलिए ममता भाजपा के प्रति चाहे जितना सद्भाव दिखाएं अल्पसंख्यक उनको ही वोट करेंगे। कम से कम अगले चुनाव तक तो यह स्थिति नहीं बदलने वाली है।
तभी वे बात बात पर केंद्र सरकार के प्रति सद्भाव दिखा रही हैं। उप राष्ट्रपति के चुनाव में गैरहाजिर रह कर उन्होंने एनडीए उम्मीदवार की मदद की तो पिछले दिनों पश्चिम बंगाल के कार्यकारी राज्यपाल रहे ला गणेशन के भाई के जन्मदिन के कार्यक्रम में शामिल होने के लिए तमिलनाडु गईं। उन्होंने कई दिन पहले ऐलान कर दिया कि वे पांच दिसंबर को दिल्ली में प्रधानमंत्री मोदी से मिलेंगी। अब उन्होंने राज्य में नेता विपक्ष शुभेंदु अधिकारी को चाय पर बुला कर उनसे बात की। शुभेंदु पहले उनकी पार्टी में ही थे। नंदीग्राम विधानसभा सीट पर उन्होंने ममता को हराया था और उसके बाद से लगातार ममता सरकार पर हमलावर रहे हैं। पिछले दिनों उन्होंने नए राज्यपाल आनंद बोस के शपथ समारोह का भी बहिष्कार किया क्योंकि राज्य सरकार ने उनके बैठने की व्यवस्था ठीक नहीं की थी। इसके बावजूद ममता ने उनको चाय पर बुलाया और उनको अपना भाई बताया। यह बहुत दिलचस्प राजनीति है।