संसद का बजट सत्र शुरू होने से पहले यानी फरवरी के आखिरी हफ्ते में ऐसा लग रहा था कि इस बार बजट सत्र के दौरान विपक्षी नेताओं का दिल्ली में जमावड़ा लगेगा। के चंद्रशेखर राव मुख्यमंत्रियों की बैठक करना चाह रहे थे तो एमके स्टालिन और ममता बनर्जी ने भी इसकी पहल की थी। यह कयास लगाए जा रहे थे कि विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री दिल्ली में मिलेंगे या हैदराबाद में। कांग्रेस के मुख्यमंत्री और कांग्रेस समर्थित राज्य सरकार के मुख्यमंत्री इसमें शामिल होंगे या नहीं इसकी अटकलें भी लगाई जा रही थी। बाद में ममता बनर्जी ने विपक्षी शासन वाले राज्यों के मुख्यमंत्रियों को चिट्ठी लिखी। इतने प्रयास के बावजूद विपक्षी मुख्यमंत्रियों की बैठक नहीं हुई। संसद का सत्र बीत गया। आगे भी विपक्षी मुख्यमंत्री कब मिलेंगे, यह किसी को पता नहीं है।
असल में राजनीतिक मोर्चे से अलग विपक्षी मुख्यमंत्रियों को राजकाज के मुद्दे पर मिलना है। गैर भाजपा राज्यों की सरकारें वस्तु व सेवा कर यानी जीएसटी कानून के मुआवजा वाले प्रावधान को दो साल और बढ़ाना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि कोरोना वायरस के दो सालों को जीरो वर्ष घोषित किया जाए और कम से कम दो साल के लिए और इसे बढ़ाया जाए। राज्य सरकारें चाहती हैं कि जीएसटी वसूली कम होने या हर साल 14 फीसदी की दर से नहीं बढ़ने की स्थिति में दिया जाना वाल मुआवजा दो साल और दिया जाए। इसके अलावा केंद्रीय करों में राज्यों की घटती हिस्सेदारी के मसले पर भी राज्यों को मिलना था। बीएसएफ के अधिकार क्षेत्र का दायरा बढ़ाए जाने और केंद्रीय एजेंसियों की कार्रवाई को लेकर भी विपक्षी पार्टियों के मुख्यमंत्री मिलने वाले थे। लेकिन यह कब होगा, नहीं कहा जा सकता।