कांग्रेस पार्टी एफर्मेटिव एक्शन यानी आरक्षण जैसे नियमों की पैरोकार रही है। हालांकि यह अलग बात है कि उसने दशकों तक मंडल आयोग की रिपोर्ट ठंडे बस्ते में डाल रखी थी और अपने लंबे शासन में कभी भी महिला आरक्षण लागू करने का गंभीर प्रयास नहीं किया। लेकिन दिखावा करने में पार्टी कभी पीछे नहीं रहती है। इस बार भी चिंतन शिविर से पहले कांग्रेस अध्यक्ष की बनाई छह कमेटियों में से एक कमेटी ने सुझाव दिया है कि पार्टी संगठन में एससी, एसटी, ओबीसी और अल्पसंख्यक को 50 फीसदी आरक्षण दिया जाए। कांग्रेस अब भी इन समूहों को 20 फीसदी आरक्षण देती है।
सोचें, यह कैसी फालतू की बात है। किसी भी पार्टी को अपने संगठन में लोगों को पदाधिकारी नियुक्त करने के लिए किसी आरक्षण नीति की जरूरत क्यों होनी चाहिए? क्या मुकुल वासनिक किसी आरक्षण की वजह से पार्टी के महासचिव हैं या सुशील शिंदे, मीरा कुमार आदि किसी आरक्षण नीति से आगे बढ़े? अहमद पटेल क्या आरक्षण नीति से पार्टी अध्यक्ष के राजनीतिक सचिव और संगठन में दूसरे सबसे शक्तिशाली नेता बने थे? किसी भी जाति या समुदाय का नेता अगर अच्छा काम कर रहा है और तेज-तर्रार है तो उसे संगठन में जगह देना चाहिए। कांग्रेस पार्टी कौन सी भारत सरकार है, जिसके पद सीमित हैं और उनमें आरक्षण करना जरूरी है? पार्टी किसी राज्य में 10 की जगह 90 महासचिव बना सकती है, फिर आरक्षण की क्या जरूरत है? पदाधिकारियों की संख्या घटाने-बढ़ाने का अधिकार पार्टी का है, इसलिए उसे आरक्षण की नीति बनाने की कोई जरूरत नहीं है।
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