कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम की पारंपरिक शिवगंगा सीट पर डीएमके के समर्थन से चुनाव जीत कर सांसद बने कार्ति चिदंबरम ने हर मामले में पार्टी से अलग राय दिखाने का फैसला कर लिया दिखते हैं। कांग्रेस में नेताओं को कई तरह की छूट मिली होती है लेकिन ऐसा नहीं होता है कि कोई एक नेता लगातार पार्टी आलाकमान के खिलाफ जाकर बयान दे या काम करे। कार्ति चिदंबरम वहीं काम कर रहे हैं। जानकार सूत्रों के कहना है कि केंद्रीय एजेंसियों की जांच से बचने के लिए वे ऐसा कर रहे हैं। यह भी कहा जा रहा है कि वे पार्टी आलाकमान की इच्छा से इस तरह की राजनीति कर रहे हैं।
कार्ति चिदंबरम ने गरीब सवर्णों को मिले आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का विरोध किया है। उन्होंने तमिलनाडु में सत्तारूढ़ डीएमके की राय का समर्थन किया है। उन्होंने कहा कि गरीब सवर्णों को आरक्षण देना ठीक नहीं है। दूसरी ओर कांग्रेस ने आधिकारिक रूप से इसका समर्थन किया है और यह भी कहा कि इसकी शुरुआत प्रधानमंत्री रहते मनमोहन सिंह ने की थी। कहा जा रहा है कि चूंकि कांग्रेस आधिकारिक रूप से इसका विरोध नहीं कर सकती थी, जबकि तमिलनाडु में इसका विरोध जरूरी था इसलिए कार्ति ने किया है। इसी तरह कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव में शशि थरूर के समर्थन में सबसे ज्यादा मेहनत कार्ति ने की। थरूर पार्टी के अघोषित आधिकारिक उम्मीदवार मल्लिकार्जुन खड़गे के खिलाफ लड़ रहे थे। फिर भी कार्ति चिदंबरम ने खुल कर उनके लिए प्रचार किया और चुनाव प्रक्रिया में कमी निकाल कर सवाल भी उठाए।