जनवरी से मार्च तक भारत और चीन के आपसी कारोबार में 15.3 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान कुल 31.96 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। इसमें 27.1 बिलियन डॉलर का भारत ने आयात किया। इसके पहले 2021 में भारत-चीन का आपसी कारोबार पहली 125 बिलियन डॉलर के ऊपर चला गया था।
हनुमान जयंती के दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पुणे में 108 फीट ऊंची हनुमान प्रतिमा का अनावरण करते हुए देशवासियों से देश में बनी चीजों का उपयोग करने की अपील की। उन्होंने कहा कि यही आत्म-निर्भरता का रास्ता है। लेकिन उसी रोज इस वर्ष के पहले तीन महीनों के भारत-चीन व्यापार के आंकड़े सामने आए। इनसे जाहिर हुआ कि पिछले जनवरी से मार्च तक भारत और चीन के आपसी कारोबार में 15.3 प्रतिशत बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान कुल 31.96 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। इसमें 27.1 बिलियन डॉलर का भारत ने आयात किया। इसके पहले 2021 में भारत और चीन का आपसी कारोबार पहली 125 बिलियन डॉलर के ऊपर चला गया था। उसमें लगभग 98 बिलियन डॉलर का आयात था। यह सूरत तब है, जबकि 2020 में गवलान घाटी में दोनों देशों के सैनिकों के बीच हुई झड़प के बाद भारत सरकार ने चीन के आयात को सीमित करने के कई कदम उठाए हैँ। चीनी कारोबारियों के भारत में निवेश पर सीमाएं लगाई गई हैँ। तो सवाल है कि यह सूरत यह है तो आखिर आत्म निर्भरता के रास्ते पर भारत कितना आगे बढ़ रहा है? अब एक दूसरे ताजा आंकड़े पर गौर कीजिए। सेंटर फॉर मोनिटरिंग ऑफ इंडियन इनकॉनमी (सीएमआईई) के मुताबिक मार्च में भारत का रोजगार बाजार और सिकुड़ गया।
इस महीने रोजगार की तलाश से निराश होकर 14 लाख लोगों ने अपने को इस बाजार से अलग कर लिया। इस तरह भारत के श्रम बाजार में मौजूद लोगों की संख्या 39 करोड़ 60 लाख रह गई है। सीएमआईई ने अपनी रिपोर्ट में कहा गया है- ‘ये आकंड़े भारत में आर्थिक विपदा का सबसे बड़ा संकेत हैँ। लाखों लोगों ने रोजगार बाजार छोड़ दिया है। संभवतः इसका कारणअ यह है कि वे नौकरी पाने में नाकामी से वे बेहद हताश हो गए हैँ। उनके मन में ये बात घर कर गई है कि कोई नौकरी उपलब्ध नहीं है।’ सीएमआईई ने बताया है कि बीते फरवरी में भारत में श्रम भागीदारी दर 39.9 फीसदी थी, जो मार्च में 39.6 प्रतिशत रह गई। किसी भी खुशहाल देश में यह दर 60 से 70 फीसदी के बीच होती है। यानी कामकाज में सक्षम आबादी के बीच कुल इतने लोग रोजगार बाजार में मौजूद रहते हैँ। भारत की कहानी उलटी दिशा में है। इसके बीच आत्मनिर्भरता और पांच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने जैसी बातों का क्या मतलब है, सहज ही समझा जा सकता है।
लेकिन इस सबसे वॉटर को कुछ फर्क नहीं पड़ता ।