सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस ने दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच अधिकारों को लेकर चल रही लड़ाई से जुड़े मामल की सुनवाई करते हुए पूछा कि दिल्ली में चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है, जब पूरा प्रशासन केंद्र सरकार के हिसाब से चलना है? यह बहुत जायज सवाल है। जब दिल्ली का प्रशासन उप राज्यपाल के जरिए केंद्रीय गृह मंत्रालय चलाएगा फिर दिल्ली में विधानसभा और चुनी हुई सरकार का क्या मतलब है? ध्यान रहे दिल्ली में कई तरह की शासन व्यवस्थाएं एक साथ काम करती हैं। कुछ विषयों की जिम्मेदारी राज्य की चुनी हुई सरकार संभालती है, कुछ विषय दिल्ली नगर निगम के अधीन आते हैं, कुछ इलाके एनडीएमसी के हैं, जहां सीधे केंद्र का राज चलता है तो कुछ सेना के अधिकार का क्षेत्र है। जमीन और पुलिस का मामला पूरी दिल्ली में सीधे केंद्र के पास है।
पिछले दिनों संसद में गवर्नमेंट ऑफ नेशनल कैपिटल टेरिटरी ऑफ दिल्ली यानी जीएनसीटीडी कानून पास किया गया, जिसमें यह प्रावधान है कि सरकार का मतलब उप राज्यपाल है। अब या दिल्ली में यह जीएनसीटीडी एक्ट लागू होगा या चुनी हुई विधानसभा और सरकार रहेगी। दोनों के साथ साथ रहने का कोई मतलब नहीं है। यह सिर्फ आम आदमी की मेहनत की कमाई की बरबादी है, जो विधानसभा और दिल्ली की चुनी हुई सरकार चल रही है। अगर चुनी हुई सरकार जनादेश के हिसाब से काम नहीं कर सकती है, अपने चुनावी वादों को लागू नहीं कर सकती है, मामूली मामूली बात के लिए उसे उप राज्यपाल से मंजूरी लेनी है तो फिर उस सरकार के रहने का कोई मतलब नहीं है। वैसे भी भाजपा अब 1998 से लगातार हार कर तंग आई हुई है। इसलिए हैरानी नहीं होगी अगर इसी विवाद में विधानसभा खत्म हो जाए और 1993 से पहले वाली व्यवस्था बहाल हो जाए।