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पासवान की पार्टी अब क्या करेगी?

ByNI Political,
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पासवान की पार्टी अब क्या करेगी?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने महादलित वोट का अपना कार्ड चल दिया है। उन्होंने अपनी पार्टी के पुराने नेता और पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा को एनडीए का हिस्सा बना लिया है। मांझी विधानसभा की दस सीटों की मांग करते हुए एनडीए में शामिल हुए हैं पर उनकी जैसी स्थिति है उसे देखते हुए लगता है कि पांच से सात सीटों पर वे राजी हो जाएंगे। उनको ज्यादातर सीटें अपने परिवार और रिश्तेदारों के लिए ही चाहिए। उनके एनडीए में शामिल होने के बाद यक्ष प्रश्न यह है कि रामविलास पासवान की पार्टी क्या करेगी? क्या मांझी के जरिए नीतीश ने पासवान को चेकमेट कर दिया है। कम से कम अभी तो ऐसा ही लग रहा है। पटना में चल रही चर्चाओं को मानें तो कहा जा रहा है कि भाजपा के चक्कर में आकर पासवान पिता-पुत्र यानी रामविलास पासवान और चिराग पासवान ने नीतीश कुमार का सद्भाव गंवा दिया। पहले पासवान परिवार का नीतीश से अच्छा सद्भाव था। तभी एनडीए में वापस लौटने के बाद नीतीश ने पासवान के भाई पशुपति पारस को विधान परिषद की सीट देकर अपनी सरकार में मंत्री बनाया था। पर पिछले लोकसभा चुनाव के बाद से चिराग पासवान भाजपा के साथ मिल कर नीतीश के खिलाफ दबाव की राजनीति करने लगें। पर उनको नहीं पता है कि जमीनी राजनीति में भले नीतीश कुमार का वोट बैंक पासवान परिवार से कम है पर दांव-पेंच की राजनीति में नीतीश बहुत आगे हैं, जैसा कि लालू प्रसाद ने कहा था कि उनके पेट में दांत है।मांझी को एनडीए में लाकर और उससे पहले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष अशोक चौधरी को अपनी पार्टी में शामिल कर और मंत्री बना कर नीतीश ने दलित वोट अपना बनाया है और लोजपा को सिर्फ पासवान वोट की पार्टी बना दिया है। इससे पासवान परिवार की सीट के लिए मोलभाव की ताकत कम हुई है। अब उनको या तो भाजपा और जदयू की ओर से जो सीट मिलेगी उस पर राजी होना होगा या अकेले लड़ना होगा। ज्यादा सीटों के लिए दबाव बनाने के मकसद से लोजपा ने यह प्रचार कराया है कि वह 129 सीटों पर लड़ेगी। पर ऐसा होगा नहीं। अब लोजपा को 25 से भी कम सीटों पर समझौता करना पड़ सकता है।
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