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आजकल उपाधियां बांट कौन रहा है?

ByNI Political,
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आजकल उपाधियां बांट कौन रहा है?
पुराने जमाने में बड़े लोग एक-दूसरे को उपाधियां देते थे। अंग्रेज और उससे पहले मुगल सरकारें भी अपने वफादार लोगों को उपाधियां या पदवी दिया करते थे। इतिहास के छात्रों को पता है कि सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि किसने दी या मोहनदास करमचंद गांधी को महात्मा की उपाधि किसने दी या वल्लभ भाई पटेल को सरदार और जवाहरलाल नेहरू को चाचा नेहरू की उपाधि कैसे मिली। लेकिन आजकल पता नहीं है कोई इस तरह की उपाधियां बांट रहा है या लोग खुद ही अपने नाम के साथ उपाधि लगाने लगे हैं? सरकार को इसका पता लगाना चाहिए और कुछ मामलों में तो तत्काल कार्रवाई करनी चाहिए।

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जैसे पहले अपने नाम के साथ श्री श्री लगाने वाले ऑर्ट ऑफ लिविंग के प्रमुख रविशंकर ने अब अपने नाम के साथ गुरुदेव की उपाधि लगा ली है। अब वे गुरुदेव रविशंकर हो गए हैं। इसी नाम से उनका ट्विटर हैंडल भी है। सोचें, गुरुदेव की उपाधि रविंद्रनाथ टैगोर को खुद महात्मा गांधी ने दी थी। वे उनकी बेमिसाल प्रतिभा के कायल थे और विश्व भारती के प्रयोग से अभिभूत थे। सो, उन्होंने टैगोर को गुरुदेव लिखा।

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अब अक्सर आरोपों में घिरे रहने वाले एक कारोबारी ने अपने नाम के साथ गुरुदेव लगा लिया। ध्यान रहे यह सिर्फ एक उपाधि नहीं है, बल्कि एक खास व्यक्ति से जुड़ी उपाधि है। इसी तरह पतंजलि समूह के रामदेव ने अपने नाम के साथ स्वामी लगा लिया और खुद को योगऋषि कहने लगे। महान चिंतक अरविंद को महर्षि की उपाधि मिली थी। लेकिन अब योग को धंधा बनाने वाले ने अपने नाम में योगऋषि लगा लिया। उधर माता यशोदा और भगवान कृष्ण के संबंधों को कलंकित बताने वाले जग्गी वासुदेव अपने को सद्गुरू कहलवा रहे हैं।
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