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किसानों से पहले बात क्यों नहीं हुई?

ByNI Political,
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किसानों से पहले बात क्यों नहीं हुई?
यह लाख टके का सवाल है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तीनों विवादित कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा करने से पहले किसानों से बातचीत क्यों नहीं की? अगर वे खुद बात नहीं कर सकते थे तो इससे पहले किसानों से कई दौर की बातचीत कर चुके कृषि व किसान कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर की किसानों से बात करा कर कानूनों की वापसी के बारे में बताने और आंदोलन खत्म करने की सहमति लेने का प्रयास क्यों नहीं किया? अगर प्रधानमंत्री को इस फैसले का राजनीतिक लाभ लेना ही था तो राजनाथ सिंह या उत्तर प्रदेश के किसी दूसरे नेता को आगे करके किसानों से बातचीत करते और किसानों से यह सहमति लेते कि सरकार कानून वापस लेगी और बदले में किसान आंदोलन खत्म करेंगे। अगर आधिकारिक रूप से संभव नहीं था तो सरकार बैक चैनल से बता कर सकती थी।  हाल में कांग्रेस छोड़ कर अलग हुए पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टेन अमरिंदर सिंह को इस  काम में लगाया जा सकता था। आंदोलन कर रहे किसान संगठनों के साथ उनका अच्छा सद्भाव है और उन्होंने आंदोलन में किसानों की मदद की है। अगर सरकार ने किसानों से पहले बात की होती तो प्रधानमंत्री के लिए शर्मिंदगी वाली स्थिति पैदा नहीं होती। सोचें, प्रधानमंत्री ने खुद कानून वापस लेने की घोषणा की है और वह भी राष्ट्रीय टेलीविजन चैनल पर, इसके बावजूद किसान आंदोलन नहीं खत्म कर रहे हैं। Kishan andolan farmer protest Read also योगी का कंधा और मोदी का टेकओवर! तभी सवाल है कि प्रधानमंत्री ने किसानों से चर्चा किए बगैर किस सोच में कानून वापस लेने का ऐलान कर दिया और यह उम्मीद पाल बैठे कि वे घोषणा करेंगे और किसान आंदोलन खत्म करके घर चले जाएंगे? आमतौर पर सरकार जब भी इस तरह के फैसले करती है तो उसके पीछे काफी काम किया जाता है। यहां तक कि सरकार किसी को कोई पद देती है या पुरस्कार-सम्मान देती है तब भी उसकी पहले सहमति ली जाती है क्योंकि बाद में अगर कोई उससे इनकार करता है तो सरकार को शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है। लेकिन यहां इतना बड़ा फैसला हुआ और दूसरे पक्ष को इसमें शामिल ही नहीं किया गया। इसलिए यह भी संदेह होता है कि यह ऐलान भी किसानों की साख बिगाड़ने वाला ही तो नहीं है। क्योंकि यह संभव नहीं है कि प्रधानमंत्री और उनके रणनीतिकारों की टीम को पता न हो किसी किसान सिर्फ तीनों कानून वापस लेने भर से आंदोलन खत्म नहीं करेंगे। उनको यह भी अंदाजा रहा होगा कि कानून वापसी की मांग माने जाने के बाद किसान दूसरी मांगें सामने रखेंगे। एमएसपी का मुद्दा उठेगा और केंद्रीय राज्य मंत्री अजय मिश्र टेनी को हटाने की भी मांग उठेगी। फिर भी उन्होंने तीन कानून वापस लेकर किसानों की वापसी की उम्मीद पाली। अब सोशल मीडिया में भाजपा के समर्थक कहने लगे हैं कि वे पहले से जानते थे कि यह आंदोलन किसानों का नहीं है और न किसानों के मुद्दे पर है, बल्कि यह आंदोलन सिर्फ नरेंद्र मोदी का विरोध करने के लिए है।
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