कांग्रेस भी कमाल की पार्टी है। शशि थरूर कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से पहले सोनिया गांधी से मिलने गए थे और उनकी मंजूरी लेकर चुनाव लड़े थे। पहले भी अध्यक्ष का चुनाव होने पर कांग्रेस के नेता चुनाव लड़ते थे। यह भी हकीकत है कि थरूर लड़े तभी मल्लिकार्जुन खड़गे के चुनाव को लोकतांत्रिक वैधता मिली। कांग्रेस सीना ठोक कर कह रही है कि कांग्रेस अकेली पार्टी है, जिसमें लोकतांत्रिक तरीके से चुना हुआ अध्यक्ष है। अगर खड़गे निर्विरोध चुने जाते तो कांग्रेस यह कहने की स्थिति में नहीं होती। फिर भी कांग्रेस पार्टी के नेता थरूर के पीछे पड़े हैं। थरूर जब भी अपने गृह राज्य केरल के दौरे पर जा रहे हैं तो प्रदेश के नेताओं के कान खड़े हो जा रहे हैं। वे उनके हर कार्यक्रम को फेल करने में लग जा रहे हैं और सबसे हैरानी की बात है कि यह ऊपर के निर्देश पर हो रहा है।
सवाल है कि ऊपर से कौन निर्देश दे रहा है? क्या राहुल या प्रियंका के स्तर से निर्देश दिया जा रहा है या केरल के ही रहने वाले कांग्रेस के संगठन महासचिव केसी वेणुगोपाल कुछ कर रहे हैं या प्रभारी तारिक अनवर जबरदस्ती सशंकित हो गए हैं? थरूर ने इशारा किया कि वे 2026 का विधानसभा चुनाव लड़ सकते हैं। वह भी पत्रकारों के पूछने पर उन्होंने यह बात कही लेकिन साथ ही यह भी कहा कि 2026 अभी बहुत दूर है। ध्यान रहे उससे पहले 2024 में लोकसभा का चुनाव होना है। थरूर तिरूवनंतपुरम सीट से तीन बार सांसद चुने गए हैं और कोई कारण नहीं है कि वे चौथी बार नहीं लड़ें। कायदे से कांग्रेस को थरूर से डरने या घबराने की बजाय उनको खुल कर राजनीति करने देना चाहिए। वे ऐसा चेहरा हैं, जो केरल में कांग्रेस की नाव को भंवर से निकाल सकते हैं। पांच साल पर सत्ता बदलने का रिवाज टूट चुका है। पुराने नेताओं के साथ कांग्रेस लगातार दो चुनाव हार चुकी। तीसरी बार न हारे इसके लिए कांग्रेस को नई रणनीति बनानी चाहिए।