संशोधित नागरिकता कानून यानी सीएए संसद से पास होकर राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बन चुका है। लेकिन अभी तक केंद्र सरकार ने इस कानून के नियम नहीं अधिसूचित किए हैं इसलिए यह कानून लागू नहीं हो रहा है। इस कानून के तहत केंद्र सरकार ने यह प्रावधान किया है कि तीन पड़ोसी देशों- पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से प्रताड़ित होकर भारत आने वाले वहां के अल्पसंख्यकों यानी हिंदू, सिख, जैन, बौद्ध और पारसी को भारत की नागरिकता दी जाएगी।
यह भी पढ़ें: पंजाब में क्या कैप्टेन समझेंगे?
असम और पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में इस कानून का बहुत विरोध हो रहा है क्योंकि वहां के स्थानीय लोगों को लग रहा है कि इससे उनके राज्य की जनसंख्या संरचना बदल जाएगी। चूंकि इस साल असम में चुनाव होना था इसलिए भाजपा ने कानून को रोके रखा।
यह भी पढ़ें: केरल कांग्रेस का मामला, उलझा
अब पिछले दरवाजे से सरकार इस कानून को पूर्वोत्तर की बजाय पांच दूसरे राज्यों में लागू करने की जा रही है। गृह मंत्रालय ने निर्देश जारी किया है कि गुजरात, राजस्थान, हरियाणा, छत्तीसगढ़ और पंजाब के 13 जिलों में पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से आए अल्पसंख्यकों से नागरिकता के लिए आवेदन लिया और उसकी जांच की जाए। यानी उन्हें नागरिकता देने की प्रक्रिया शुरू की जाए। यह काम नागरिकता देने वाले पुराने कानूनों के आधार पर ही किया जाना है। सवाल है कि जब खास इस काम के लिए एक नया कानून बन गया है तो उसे लागू करने की बजाय सरकार पुराने कानून से क्यों काम चलाना चाहती है?
यह भी पढ़ें: ज्यादा शवदाह गृह के लिए याचिका
इसके दो कारण समझ में आते हैं। पहला कारण तो यह है कि इस कानून को पूर्वोत्तर में घनघोर विरोध होगा। ऑल असम स्टूडेंट यूनियन, आसू ने पहले ही विरोध का ऐलान कर दिया है। दूसरे राज्यों में भी विरोध होगा। नए सिरे से सीएए विरोधी आंदोलन शुरू हो सकते हैं, जो सरकार अभी नहीं चाहती है इसलिए पिछले दरवाजे का इस्तेमाल हो रहा है। दूसरा तात्कालिक कारण यह है कि कोरोना संकट के बीच ध्यान भटकाने के लिए हर दिन नए मुद्दे की जरूरत है तो यह भी एक-दो दिन काम आ जाएगा। यह भी ध्यान रहे देश में सिर्फ तीन ही राज्यों में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हैं और उन तीनों राज्यों में इसे शुरू किया जा रहा है। सो, इसके पूछे दूरगामी योजना भी है।