laws on vaccine companies : खबर है कि भारत सरकार ने वैक्सीन बनाने वाली दोनों कंपनियों- सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटेक से बात की है और उनसे अनुरोध किया है कि वे अपनी वैक्सीन की कीमत कम करें। ध्यान रहे जिस दिन केंद्र सरकार ने अपनी नई वैक्सीन नीति घोषित की उसके कुछ ही दिन बाद दोनों कंपनियों ने अनाप-शनाप कीमतों का ऐलान किया। सीरम इंस्टीच्यूट ने कहा है कि वह भारत सरकार को डेढ़ सौ में, राज्य सरकारों को चार सौ में और निजी अस्पतालों को छह सौ में वैक्सीन देगी। इसके बाद भारत बायोटेक ने कहा कि वह राज्य सरकारों को छह सौ में और निजी अस्पतालों को 12 सौ में वैक्सीन देगी।
इसके बाद कई राज्य सरकारों ने कीमत कम करने का अनुरोध किया और फिर यह तमाशा हुआ कि केंद्र सरकार उनसे बात कर रही है कि वे कीमत कम करें। सवाल है कि इन कंपनियों से अनुरोध का क्या मतलब है? अनुरोध की बजाय केंद्र सरकार को इन कंपनियों से पूछना चाहिए कि उन्होंने क्यों अनाप-शनाप कीमत तय की है। भारत में मुनाफाखोरी के खिलाफ कानून बना हुआ है। भारत सरकार यह कानून क्यों नहीं लागू करती है? मुनाफाखोरी विरोधी कानून या राष्ट्रीय आपदा कानून लागू करके सरकार इन कंपनियों को न्यूनतम कीमत पर वैक्सीन देने के लिए बाध्य कर सकती है। सरकार सेना का इस्तेमाल करके भी वैक्सीन की उत्पादन क्षमता बढ़वा सकती है। लेकिन इसके लिए सरकार के अदंर दृढ़ इच्छाशक्ति की जरूरत है और यह भी जरूरी है कि सरकार इन कंपनियों से मिली हुई न हो।
laws on vaccine companies : सीरम इंस्टीच्यूट के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा कि उन्हें डेढ़ सौ रुपए में भी वैक्सीन बेच कर मुनाफा हो रहा है फिर वे वहीं वैक्सीन चार सौ या छह सौ में कैसे बेच सकते हैं? उन्होंने यह भी कहा कि उनको तीन हजार करोड़ रुपए की जरूरत है, उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए। लेकिन यह नहीं बताया कि पिछले ही साल उनको बिल गेट्स और डब्लुएचओ की साझा संस्था गावी यानी ग्लोबल एलायंस फॉर वैक्सीन एंड इम्युनाइजेशन की ओर से 30 करोड़ डॉलर यानी करीब 22-23 सौ करोड़ रुपए का अनुदान मिला था, उसका उन्होंने क्या किया? उसका इस्तेमाल करके वैक्सीन उत्पाद की क्षमता क्यों नहीं बढ़ाई?
laws on vaccine companies : सीरम इंस्टीच्यूट को वैक्सीन के रिसर्च पर कोई रकम नहीं खर्च करनी पड़ी है क्योंकि वह खर्च ऑक्सफोर्ड और एस्ट्राजेनेका ने किया था। ऊपर से गावी के अलावा और भी कई देशों से उसे एडवांस पैसे मिले थे लेकिन कंपनी ने उनका इस्तेमाल उत्पादन क्षमता बढ़ाने के लिए नहीं किया। अब आपदा को अवसर बना कर कंपनी चाहती है कि भारत सरकार अनुदान दे नहीं तो वह राज्यों और निजी कंपनियों से मनमाना दाम वसूलेगी। ऐसे मुनाफाखोर साहूकार से अनुरोध की बजाय सरकार को कानूनी तरीके से निपटना चाहिए। केंद्र सरकार को चाहिए कि वह पहल करके वैक्सीन की न्यूनतम कीमत तय करे, खुद वैक्सीन खरीदे और राज्यों को समानता के सिद्धांत पर आपूर्ति करे।
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