पिछले साल फरवरी में जम्मू कश्मीर के पुलवामा में आतंकवादियों ने केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल, सीआरपीएफ के एक काफिले पर भीषण आतंकवादी हमला किया था, जिसमें अर्धसैनिक बल के 40 जवान शहीद हो गए थे। इन जवानों को श्रद्धांजलि देने तब के केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह खुद जम्मू कश्मीर गए। दिल्ली में उन्होंने सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक में हिस्सा लिया और फिर श्रीनगर गए, जहां उन्होंने सीआरपीएफ मुख्यालय में शहीद जवानों को श्रद्धांजलि दी। उसके बाद सभी शहीदों के शव को दिल्ली लाया गया, जहां प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक साथ सभी को श्रद्धांजलि दी, जिसके बाद सभी शहीदों के शव उनके गृह राज्य भेज गए। दिल्ली में दूसरे नेताओं और सैन्य व सरकारी अधिकारियों ने भी शहीदों को श्रद्धांजलि दी, जिसमें राहुल गांधी भी शामिल थे।
सवाल है कि इस बार उस तरह के सम्मान और श्रद्धांजलि का कार्यक्रम क्यों नहीं हुआ? क्यों नहीं गलवान घाटी में शहीद हुए 20 जवानों के सम्मान में लद्दाख में कोई कार्यक्रम हुआ? क्यों नहीं उनका शव दिल्ली लाया गया, जहां प्रधानमंत्री, रक्षा मंत्री और तीनों सेना के प्रमुख उनको श्रद्धांजलि देते? याद रहे पिछले 45 साल में पहली बार चीन के साथ भारत की झड़प हुई, जिसमें इतने जवान शहीद हुए। सो, जवानों का मनोबल बढ़ाने और चीन को मैसेज देने की लिए भी जरूरी था कि शहीदों का सम्मान दिल्ली में किया जाता। पर इसकी बजाय शहीदों के शव सीधे उनके गृह राज्य भेज दिए गए। पुलवामा कांड और गलवान की घटना में फर्क यह है कि उस समय दो महीने में ही लोकसभा के चुनाव होने थे और शहीदों की फोटो मंच पर लगा कर वोट मांगना था।
शहीदों को पुलवामा जैसा सम्मान क्यों नहीं?
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