Modi governement caste census इसमें कोई संदेह नहीं है कि भारतीय जनता पार्टी बहुत जोर-शोर से ओबीसी राजनीति कर रही है और उसको इसका फायदा भी मिल रहा है। लेकिन पार्टी जाति आधारित जनगणना नहीं कराएगी। कम से कम अभी यह तय है कि भाजपा को जातियों की गिनती नहीं करनी है क्योंकि इससे ओबीसी आरक्षण का वह पंडोरा बॉक्स खुलेगा, जिसे बंद करना किसी के लिए मुमकिन नहीं होगा। जातियों के बीच जो संतुलन और शांति है वह भंग होगी। आरक्षण के भीतर आरक्षण की मांग तेज होगी और आरक्षण की सीमा बढ़ाने का भी आंदोलन शुरू होगा। यानी कुल मिला कर देश में नब्बे के दशक वाले हालात बन जाएंगे। देश में मंडल-दो की राजनीति शुरू हो जाएगी और इससे भाजपा का बनाया समीकरण प्रभावित होगा।
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ध्यान रहे आखिरी बार 1931 में हुई जनगणना के लिहाज से देश में ओबीसी की आबादी 52 फीसदी के करीब है। लेकिन उसके बाद इतनी नई जातियों को ओबीसी में शामिल किया गया है कि इस संख्या में निश्चित रूप से इजाफा हुआ होगा। इसके बावजूद अगर यह आंकड़ा आता है कि 52 से 54 फीसदी आबादी ओबीसी है तो निश्चित रूप से आबादी के अनुपात में आरक्षण की मांग उठेगी। आखिर दलित और आदिवासी को उनकी आबादी के अनुपात में आरक्षण मिला हुआ है। आबादी के अनुपात में आरक्षण देने के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा तय की गई आरक्षण की 50 फीसदी की सीमा को आगे बढ़ाना होगा। दूसरा खतरा यह है कि सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर गिनती से यह भी पता चलेगा कि किस जाति को आरक्षण का कितना लाभ मिला है। ऐसे में ओबीसी की मजबूत जातियों का आरक्षण कम करने और अति पिछड़ी जातियों का आरक्षण बढ़ाने की मांग भी तेज होगी। भाजपा इस समय ऐसा कोई विवाद खड़ा नहीं करना चाहती है, जिससे जमीनी स्तर पर जातियों का समीकरण और संतुलन प्रभावित हो। Modi governement caste census