केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की नियुक्ति की मंजूरी दे दी। लेकिन यह नियुक्ति आसानी नहीं हुई। सुप्रीम कोर्ट की कॉलेजियम ने 13 दिसंबर को ही इन पांच नामों की सिफारिश केंद्र सरकार के पास भेजी थी। लेकिन सरकार 20 दिन से ज्यादा समय तक इन सिफारिशों को लेकर बैठी रही। तब पिछले हफ्ते शुक्रवार को सर्वोच्च अदालत ने नाराजगी जताई। जस्टिस एसके कौल और जस्टिस एएस ओका की पीठ ने एक मामले की सुनवाई के दौरान चेतावनी देने के अंदाज में केंद्र सरकार से कहा कि जजों की नियुक्ति के मामले में देरी हुई तो प्रशासनिक और न्यायिक दोनों तक कार्रवाई हो सकती है। तब अटॉर्नी जनरल ने कहा कि सरकार जल्दी ही पांच नामों को मंजूरी देगी।
इसके एक दिन बाद शनिवार को पांच जजों के नाम की मंजूरी दी गई। हालांकि इसके साथ ही केंद्रीय कानून मंत्री किरेन रिजीजू ने मीडिया की इन खबरों को खारिज किया कि अदालत ने सरकार को चेतावनी दी। उन्होंने कहा कि कोई किसी को चेतावनी नहीं दे सकता है। लेकिन असलियत यह है कि सर्वोच्च अदालत के नाराजगी जताने के बाद ही केंद्र ने पांच नामों की मंजूरी दी। तभी सवाल है कि क्या हर बार सुप्रीम कोर्ट को इसी तरह से दबाव डालना होगा और जोर जबरदस्ती करनी होगी तभी केंद्र सरकार नामों को मंजूरी देगी? ऐसा लग रहा है कि सरकार कानूनी रूप से कॉलेजियम की सिफारिशों को मंजूरी देने के लिए बाध्य है तो वह सिफारिशों को लंबित रख कर न्यायपालिका पर अपनी सर्वोच्चता दिखाने की कोशिश कर रही है और दबाव डाल रही है कि वह जजो के लिए सर्च पैनल बनाने के केंद्र सरकार के सुझाव को स्वीकार करे। हालांकि सर्वोच्च अदालत इस मूड में नहीं है।