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क्या ओवैसी लड़ेंगे रामपुर सीट से?

ByNI Political,
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क्या ओवैसी लड़ेंगे रामपुर सीट से?
देश में कुछ उपचुनाव ऐसे हुए हैं, जिनसे पूरे देश की राजनीति प्रभावित हुई है। 1974 में जबलपुर लोकसभा सीट के उपचुनाव में शरद यादव का जीतना और 1988 में इलाहाबाद लोकसभा सीट के उपचुनाव में वीपी सिंह का जीतना ऐसे ही चुनाव थे। ऐसा ही उपचुनाव उत्तर प्रदेश की रामपुर सीट का हो सकता है। समाजवादी पार्टी के नेता आजम खान के इस्तीफे से खाली हुई इस सीट पर अगले छह महीने में लोकसभा का उपचुनाव होगा। यह चुनाव न सिर्फ उत्तर प्रदेश, बल्कि पूरे देश की राजनीति को प्रभावित करने वाला हो सकता है। इसका कारण बनेंगे ऑल इंडिया मजलिस ए इत्तेहाद उल मुसलमीन यानी एमआईएम के नेता असदुद्दीन ओवैसी। लोकसभा से इस्तीफा देने के बाद आजम खान ने समाजवादी पार्टी से दूरी बनाई है और उसके बाद से तमाम पार्टियों के नेताओं का उनसे जेल में मिलने का सिलसिला चल रहा है। लेकिन सबसे पहले ओवैसी की पार्टी ने आजम खान को चिट्ठी लिख कर एमआईएम में शामिल होने का न्योता दिया। अभी उन्होंने कोई फैसला नहीं किया है लेकिन ऐसा रहा है कि वे खुद चुनाव नहीं लड़ेंगे और यह लगभग तय लग रहा है कि वे समाजवादी पार्टी की मदद नहीं करेंगे। अभी तक की राजनीति के लिहाज से इस सीट पर उनका समर्थन चुनाव जीतने की पहली शर्त है। इस बीच खबर है कि मुस्लिम नेताओं का एक धड़ा असदुद्दीन ओवैसी को इस बात के लिए तैयार कर रहा है कि वे रामपुर सीट से चुनाव लड़ें। वे अब तक हैदराबाद सीट से सांसद का चुनाव जीतते रहे हैं और उनकी पार्टी हैदराबाद तक की ही राजनीति करती रही है। लेकिन पिछले चुनाव में उनकी पार्टी महाराष्ट्र की औरगांबाद लोकसभा सीट से जीती और बिहार में उनके पांच विधायक जीते हैं। अब उनकी उत्तर प्रदेश पर है, जहां 20 फीसदी के करीब मुस्लिम वोट है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुस्लिम आबादी 40 फीसदी के करीब है। अगर ओवैसी रामपुर सीट पर लड़ते हैं और आजम खान उनकी मदद करते हैं तो वे चुनाव जीत सकते हैं। ध्यान रहे रामपुर लोकसभा सीट पर मुस्लिम आबादी करीब 51 फीसदी है। इस लोकसभा की पांच में से दो सीटों पर आजम खान और उनके बेटे अब्दुल्ला आजम विधायक हैं। ओवैसी के लड़ने से ऐतिहासिक ध्रुवीकरण होगा और नतीजा चाहे जो वह उत्तर प्रदेश और देश की राजनीति को बदलने वाला होगा। आजादी से पहले जिस तरह कांग्रेस बनाम मुस्लिम लीग की राजनीति उत्तर प्रदेश में होती थी वैसे ही ओवैसी के लड़ने के बाद भाजपा बनाम एमआईएम की राजनीति हो जाएगी। इसका नुकसान समाजवादी पार्टी, बसपा और कांग्रेस तीनों को होगा और फायदा भाजपा और एमआईएम को होगा। इसका असर उत्तर प्रदेश के बाहर दूसरे राज्यों खास कर पश्चिम बंगाल, असम, बिहार आदि में भी होगा।
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