जम्मू कश्मीर में भाजपा से ज्यादा दिलचस्प राजनीति विपक्ष की हो गई है। ध्यान रहे 2019 में तीनों विपक्षी पार्टियों- पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने मिल कर सरकार बनाने का प्रयास किया था। लेकिन कथित तौर पर राजभवन की फैक्स मशीन खराब होने की वजह से उनका प्रस्ताव राज्यपाल को नहीं मिला और उसी क्षण उन्होंने विधानसभा भंग कर दी। उसके बाद जब जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा खत्म हुआ, अनुच्छेद 370 हटाया गया, राज्य का विभाजन हुआ और उसे केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया गया तो सभी विपक्षी पार्टियों का एक गुपकर एलायंस बना, जो बाद में बिखर गया। अब एक बार फिर तीनों विपक्षी पार्टियां एक साथ आ रही है।
कांग्रेस पार्टी की भारत जोड़ो यात्रा का समापन श्रीनगर में होना है और उससे पहले कांग्रेस के न्योते को स्वीकार करके पीडीपी की नेता महबूबा मुफ्ती और नेशनल कांफ्रेंस के नेता फारूक व उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि वे यात्रा में शामिल होंगे। राज्य की दोनों बड़ी प्रादेशिक पार्टियां अलग अलग समय में कांग्रेस की सहयोगी रही हैं। हालांकि दोनों भाजपा की भी सहयोगी रही हैं लेकिन अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद भाजपा से दूरी ज्यादा बढ़ गई है। तभी सवाल है कि क्या भाजपा को रोकने के लिए तीनों पार्टियों- पीडीपी, नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस का महागठबंधन बनेगा? ध्यान रहे पीडीपी और नेशनल कांफ्रेंस का आधार कश्मीर घाटी में रहा है और कांग्रेस जम्मू में मजबूत रही है, जहां उसका मुकाबला भाजपा से है।
पिछली बार भाजपा ने सभी 25 सीटें जम्मू में ही जीती थीं। परिसीमन के बाद जम्मू में सीटें भी बढ़ गई हैं। पहले जम्मू में 37 सीटें होती थीं, जो अब 43 हो गई हैं। इसके अलावा एसटी के लिए आरक्षण भी लागू हुआ है। सो, भाजपा ने अपने चुनाव जीतने की पूरी तैयारी की है। तीनों विपक्षी पार्टियों को पता है कि वे कश्मीर घाटी में साथ लड़ कर ही वहां की सारी सीटें जीत सकते हैं और जम्मू की कुछ सीटों पर भाजपा को रोक सकते हैं। सो, राहुल की यात्रा में महबूबा मुफ्ती, फारूक अब्दुल्ला और उमर अब्दुल्ला के शामिल होने के बाद कांग्रेस नेताओं को प्रयास करके और अपना हित छोड़ कर समझौता करना होगा।